Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World

Neha Jain SE

Members
  • Posts

    1
  • Joined

  • Last visited

 Content Type 

Profiles

Forums

Events

Jinvani

Articles

दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव

शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)

Downloads

Gallery

Blogs

Musicbox

Everything posted by Neha Jain SE

  1. बंदौं पॉचों परम गुरु, चौबीसों जिनराज । करुँ शुध्द आलोचना, शुध्दि करन के काज ॥ सुनिये जिन अरज हमारी, हम दोष किये अति भारी । तिनकी अब निवृत्ति काजा, तुम सरन लही जिनराजा ॥ इक बे ते चउ इंद्री वा, मनरहित-सहित जे जीवा । तिनकी नहीं करुणा धारी, निरदई ह्वे घात विचारी ॥ समरंभ समारंभ आरंभ, मन वच तन कीने प्रारंभ । कृत कारित मोदन करिकै, क्रोधादि चतुष्टय धरिकै ॥ शतआठ जु इमि भेदन तैं, अघ कीने परिछेदन तैं । तिनकी कहुँ कोलौं कहानी, तुम जानत केवल ज्ञानी ॥ विपरीत एकांत विनयके, संशय अज्ञान कुनयके । वशहोय घोर अघ कीने, वचतैं नहिं जात कहीने ॥ कुगुरुन की सेवा कीनी, केवल अदया करि भीनी । या विधि मिथ्यात भ्रमायो, चहुँ गतिमधि दोष उपायो ॥ हिंसा पुनि झूठ जु चोरी, परवनिता सौं दृग जोरी । आरंभ परिग्रह भीनो, पन पाप जुया विधि कीनो ॥ सपरस सरना घ्रानन को, चखु कान विषय - सेवन को । बहु करम किये मनमाने, कछु न्याय अन्याय न जाने ॥ फल पंच उदंबर खाये, मधु माँस मद्य चित चाये । नहिं अष्ट मूलगुण धारे, सेये कुव्यसन दुखकारे ॥ दुइवीस अभख जिन गाये, सो भी निसिदिन भुंजाये । कछू भेदाभेद न पायौ, ज्यों-ज्यों करि उदर भरायौ ॥ अनंतांनुबंधी जु जानो, प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यानो । संज्वलन चौकड़ी गुनिये, सब भेद जु षोडश मुनिये ॥ परिहास अरति रति शोक, भय ग्लानितिवेद संजोग । पनबीस जु भेद भये इम, इनके वश पाप किये हम ॥ निद्रा वश शयन कराई, सुपने मधि दोष लगाई । फिर जागि विषय वन धायो, नाना विध विषफल खायो ॥ आहार विहार निहारा, इनमें नहिं जतन विचारा । बिन देखी धरी उठाई, बिन सोधी वस्तु जु खाई ॥ तब ही परमाद सतायो, बहुविधि विकलप उपजायो । कछू सुधि बुधि नाहिं रही है, मिथ्यामति छाय गयी है ॥ मरजादा तुम ढ़िगं लीनी, ताहु में दोस जु कीनी । भिनभिन अब कैसें कहिये, तुम झान विषैं सब पइये ॥ हा हा ! मैं दुठ अपराधी, त्रस जीवन-राशि विराधी । थावर की जतन न कीनी, उरमें करुना नहीं लीनी ॥ पृथिवी बहु खोद कराई, महलादिक जागाँ चिनाई । पुनि बिन गाल्यो जल ढोल्यो, पंखा तै पवन बिलोल्यो ॥ हा हा ! मैं अदयाचारी, बहु हरित काय जु विदारी । ता मधि जीवन के खंदा, हम खाये धरि आनंदा ॥ हा हा ! परमाद बसाई, बिन देखे अगनि जलाई । ता मधि जे जीव जु आये, ते हू परलोकसिधाये ॥ बींध्यो अन राति पिसाये, ईंधन बिन सोधि जलायो । झाडू ले जागाँ बुहारी, चींटीऽदिक जीव बिदारी ॥ जल छानि जिवानी कीनी, सो हू पुनि डारि जु दीनी । नहिं जल-थानक पहॅुंचाई, किरिया बिन पाप उपाई ॥ जल मल मोरिन गिरवायौ, कृमिकुल बहुघात करायौ । नदियन बिच चीर धुवाये, कोसन के जीव कराये ॥ अन्नादिक शोध कराई, तामैं जु जीव निसराई । तिनका नहिं जतन कराया, गलियारे धूप डराया ॥ पुनि द्रव्य कमावन काजे, बहु आरंभ हिंसा साजे । किये तिसनावश अघ भारी, करुना नहिं रंच विचारी ॥ इत्यादिक पाप अनंता, हम कीने श्री भगवंता । संतति चिरकाल उपाई, बानी तैं कहिय न जाई ताको जु उदय अब आयो, नानाविध मोहि सतायो । फल भुजंतजिय दुख पावै, बचतैं कैसे करि गावै ॥ तुम जानत केवल ज्ञानी, दुख दूर करो शिवथानी । हम तुमरी शरण लही है, जिनतारन विरद सही है ॥ जो गाँवपती इक होवैं, सो भी दुखिया दुख खोवै । तुम तीन भुवन के स्वामी, दुख मेटहु अंतरजामी ॥ द्रोपदि को चीर बढ़ायो, सीता प्रति कमल रचायौ । अंजन से किये अकामी, दुख मेटो अंतरजामी ॥ मेरे अवगुन न चितारो, प्रभु अपनोविरद सम्हारो । सब दोष रहित करि स्वामी, दुख मेटहु अंतरजामी ॥ इंद्रादिक पदवी नहिं चाहूँ, विषयनि में नाहिं लुभाऊॅं । रागादिक दोष हरीजै, परमातम निजपद दीजै ॥ दोष रहित जिनदेव जी, निजपद दीज्यो मोय । सब जीवन के सुख बढ़ै, आनंद-मंगल होय ॥ अनुभव मानिक पारखी, 'जौहरी', आप जिनन्द । यहि वर मोहि दीजिये, चरन-सरन आनन्द ॥
×
×
  • Create New...