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JainSamaj.World

Pramod Kumar jain

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  1. सूक्ष्म का अर्थ होता है जिनको हम साधारण चक्षुऔ से नहीं देख सकते हैं। परम परम सूक्ष्म का अर्थ है कि आगे आगे के शरीर क्रमश: पहले पहले शरीर से सूक्ष्म सूक्ष्म होते जाते हैं।मनुष्य और तिर्यंचो काऔदायिक शरीर होता है। औदायिक शरीर से असंख्यात गुना सूक्ष्म वैक्रियक शरीर (देवों और नारकीयों) काहोता है,तथा वैक्रियक शरीर से असंख्यात गुना सूक्ष्म आहारक शरीर (६वें गुणस्थान वर्दी मुनिराज के दाहिने कंधे से एक सफ़ेद पुतला निकलता है जो मुनि के शंका निदान हेतु केवली भगवान के पास जाकर शंका का समाधान पाकर वापिस मुनि में समा जाता है) होता है।।आहारक शरीर से अनन्त गुना सूक्ष्म तैजस शरीर (शरीर में जो तापहोता है ,उसे तेजस शरीर कहते हैं)एवं तेजस शरीर से अनन्तगुना सूक्ष्म कार्मण (कर्मों का समूह) शरीर होता है।
  2. प्राण जिनके द्वारा जीव जीता है,उसे प्राण कहते हैं।साधारण तया किसी भी जीव के ४ प्राण होते हैं। इन्द्रिय बल आयू और श्वासोच्छवास एक इन्द्रिय जीव। १इन्द्रिय ,१काय बल ,आयू और श्वासोच्छवा कुल ४ प्राण दो इन्द्रिय जीव २इंद्रियां १काय बल ,१ वचन बल, आयू और श्वासोच्छवा कुल ६ प्राण तीन इन्द्रिय जीव ३ इन्द्रिय १ कायबल,१ वचन बल ,आयू और श्वासोच्छवास कुल ७प्राण चार इंद्रिय जीव ४इन्द्रिय १काय बल १ बचन बल ,आयू और श्वासोच्छवा कुल ८ प्राण असंज्ञी पंचेन्द्रिय ५इंद्रिय, १ काय बल,१ वचन बल, आयू और श्वासोच्छवास कुल ९ प्राण संज्ञी पंचेन्द्रिय ५ इंद्रिय,१ काय बल,१ वचन बल,१ मनोबल,आयू और श्वासोच्छवास कुल १० प्राण
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