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  1. शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करुं प्रणाम | उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम | सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार | अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मन्दिर में धार || || चौपाई || पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी | सुर नर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा | तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा | अश्वसैन के राजदुलारे, वामा की आँखो के तारे | काशी जी के स्वामी कहाये, सारी परजा मौज उड़ाये | इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुँचे | हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जगंल में गई सवारी | एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले वचन सुनाकर | तपसी! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते | तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया | निकले नाग-नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे | रहम प्रभू के दिल में आया, तभी मन्त्र नवकार सुनाया | भर कर वो पाताल सिधाये, पद्मावति धरणेन्द्र कहाये | तपसी मर कर देव कहाया, नाम कमठ ग्रन्थों में गाया | एक समय श्रीपारस स्वामी, राज छोड़ कर वन की ठानी | तप करते थे ध्यान लगाये, इकदिन कमठ वहां पर आये | फौरन ; ही प्रभु को पहिचाना, बदला लेना दिल में ठाना | बहुत अधिक बारिश बरसाई, बादल गरजे बिजली गिराई | बहुत अधिक पत्थर बरसाये, स्वामी तन को नहीं हिलाये | पद्मावती धरणेन्द्र भी आए, प्रभु की सेवा मे चित लाए | धरणेन्द्र ने फन फैलाया, प्रभु के सिर पर छत्र बनाया | पद्मावति ने फन फैलाया, उस पर स्वामी को बैठाया | कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोशरण देवेन्द्र रचाया | यही जगह अहिच्छत्र कहाये, पात्र केशरी जहां पर आये | शिष्य पाँच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना | पार्श्वनाथ का दर्शन पाया सबने जैन धरम अपनाया | अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी, जहाँ सुखी थी परजा सगरी | राजा श्री वसुपाल कहाये, वो इक जिन मन्दिर बनवाये | प्रतिमा पर पालिश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया | वह मिस्तरी मांस था खाता, इससे पालिश था गिर जाता | मुनि ने उसे उपाय बताया, पारस दर्शन व्रत दिलवाया | मिस्त्री ने व्रत पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना | गदर सतावन का किस्सा है, इक माली का यों लिक्खा है | वह माली प्रतिमा को लेकर, झट छुप गया कुए के अन्दर | उस पानी का अतिशय भारी, दूर होय सारी बीमारी | जो अहिच्छत्र ह्रदय से ध्वावे, सो नर उत्तम पदवी वावे | पुत्र संपदा की बढ़ती हो, पापों की इक दम घटती हो | है तहसील आंवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी | रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नारी नर | चालीसे को ‘चन्द्र’ बनाये, हाथ जोड़कर शीश नवाये | सोरठा: नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन | खेय सुगन्ध अपार, अहिच्छत्र में आय के | होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो | जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जग में चले ||
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