पुष्पदन्त भगवन्त सन्त सु जपंत तंत गुन |
महिमावन्त महन्त कन्त शिवतिय रमन्त मुन ||
काकन्दीपुर जन्म पिता सुग्रीव रमा सुत |
श्वेत वरन मनहरन तुम्हैं थापौं त्रिवार नुत ||
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |
हिमवन गिरिगत गंगाजल भर, कंचन भृंग भराय |
करम कलंक निवारनकारन, जजौं, तुम्हारे पाय ||
मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय, मेरी अरज सुनीजे ||
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|
बावन चन्दन कदलीनंदन, कुंकुम संग घसाय |
चरचौं चरन हरन मिथ्यातम, वीतराग गुण गाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|
शालि अखंडित सौरभमंडित, शशिसम द्युति दमकाय |
ता को पुञ्ज धरौं चरननढिग, देहु अखय पद राय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|
सुमन सुमनसम परिमलमंडित, गुंजत अलिगन आय |
ब्रह्म-पुत्र मद भंजन कारन, जजौं तुम्हारे पाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|
घेवर बावर फेनी गोंजा, मोदन मोदक लाय |
छुधा वेदनि रोग हरन कों, भेंट धरौं गुण गाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|
वाति कपूर दीप कंचनमय, उज्ज्वल ज्योति जगाय |
तिमिर मोह नाशक तुमको लखि, धरौं निकट उमगाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|
दशवर गंध धनंजय के संग, खेवत हौं गुन गाय |
अष्टकर्म ये दुष्ट जरें सो, धूम सु धूम उड़ाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|
श्रीफल मातुलिंग शुचि चिरभट, दाड़िम आम मंगाय |
ता सों तुम पद पद्म जजत हौं, विघन सघन मिट जाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|
जल फल सकल मिलाय मनोहर, मनवचतन हुलसाय |
तुम पद पूजौं प्रीति लाय के, जय जय त्रिभुवनराय ||
मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय, मेरी अरज सनीजे ||
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|
पंच कल्याणक अर्घ्यावली
नवमी तिथि कारी फागुन धारी, गरभ मांहिं थिति देवा जी |
तजि आरण थानं कृपानिधानं, करत शची तित सेवा जी ||
रतनन की धारा परम उदारा, परी व्योम तें सारा जी |
मैं पूजौं ध्यावौं भगति बढ़ावौं, करो मोहि भव पारा जी ||
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णानवम्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अर्घ्यं नि0 |1|
मंगसिर सितपच्छं परिवा स्वच्छं, जनमे तीरथनाथा जी |
तब ही चवभेवा निरजर येवा, आय नये निज माथा जी ||
सुरगिर नहवाये, मंगल गाये, पूजे प्रीति लगाई जी |
मैं पूजौं ध्यावौं भगत बढ़ावौं, निजनिधि हेतु सहाई जी ||
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला प्रतिपदायां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीपुष्प0 अर्घ्यं नि0 |2|
सित मंगसिर मासा तिथि सुखरासा, एकम के दिन धारा जी |
तप आतमज्ञानी आकुलहानी, मौन सहित अविकारा जी ||
सुरमित्र सुदानी के घर आनी, गो-पय पारन कीना जी |
तिन को मैं वन्दौं पाप निकंदौं, जो समता रस भीना जी ||
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला प्रतिपदायां तपोमंगलप्राप्ताय श्रीपुष्प0 अर्घ्यं नि0 |3|
सित कार्तिक गाये दोइज घाये, घातिकरम परचंडा जी |
केवल परकाशे भ्रम तम नाशे, सकल सार सुख मंडा जी ||
गनराज अठासी आनंदभासी, समवसरण वृषदाता जी |
हरि पूजन आयो शीश नमायो, हम पूजें जगत्राता जी ||
ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्ला द्वितीयायां ज्ञानमंगलप्राप्ताय श्रीपुष्प0 अर्घ्यं नि0 |4|
भादव सित सारा आठैं धारा, गिरिसमेद निरवाना जी |
गुन अष्ट प्रकारा अनुपम धारा, जय जय कृपा निधाना जी ||
तित इन्द्र सु आयौ, पूज रचायौ,चिह्न तहां करि दीना जी |
मैं पूजत हौं गुन ध्यान मणी सों, तुमरे रस में भीना जी ||
ॐ ह्री भाद्रपद शुक्लाऽष्टम्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीपुष्प0 अर्घ्यं नि0 |5|
जयमाला
दोहाः- लच्छन मगर सुश्वेत तन तुड्गं धनुष शत एक |
सुरनर वंदित मुकतिपति, नमौं तुम्हें शिर टेक |1|
पुहुपदन्त गुनवदन है, सागर तोय समान |
क्यों करि कर-अंजुलिनि कर, करिये तासु प्रमान |2|
पुष्पदन्त जयवन्त नमस्ते, पुण्य तीर्थंकर सन्त नमस्ते |
ज्ञान ध्यान अमलान नमस्ते, चिद्विलास सुख ज्ञान नमस्ते |3|
भवभयभंजन देव नमस्ते, मुनिगणकृत पद-सेव नमस्ते |
मिथ्या-निशि दिन-इन्द्र नमस्ते, ज्ञानपयोदधि चन्द्र नमस्ते |4|
भवदुःख तरु निःकन्द नमस्ते, राग दोष मद हनन नमस्ते |
विश्वेश्वर गुनभूर नमस्ते, धर्म सुधारस पूर नमस्ते |5|
केवल ब्रह्म प्रकाश नमस्ते, सकल चराचरभास नमस्ते |
विघ्नमहीधर विज्जु नमस्ते, जय ऊरधगति रिज्जु नमस्ते |6|
जय मकराकृत पाद नमस्ते, मकरध्वज-मदवाद नमस्ते |
कर्मभर्म परिहार नमस्ते, जय जय अधम-उद्धार नमस्ते |7|
दयाधुरंधर धीर नमस्ते, जय जय गुन गम्भीर नमस्ते |
मुक्ति रमनि पति वीर नमस्ते, हर्ता भवभय पीर नमस्ते |8|
व्यय उत्पति थितिधार नमस्ते, निजअधार अविकार नमस्ते |
भव्य भवोदधितार नमस्ते, |वृन्दावन निस्तार नमस्ते |9|
घत्ताः- जय जय जिनदेवं हरिकृतसेवं, परम धरमधन धारी जी |
मैं पूजौं ध्यावौं गुनगन गावौं, मेटो विथा हमारी जी |10|
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |
छन्दः- पुहुपदंत पद सन्त, जजें जो मनवचकाई |
नाचें गावें भगति करें, शुभ परनति लाई ||
सो पावें सुख सर्व, इन्द्र अहिमिंद तनों वर |
अनुक्रम तें निरवान, लहें निहचै प्रमोद धर ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
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