ये महामहोत्सव पंच कल्याणक आया मंगलकारी...
ये महामहोत्सव...
जब काललब्धिवश कोई जीव निज दर्शन शुद्धि रचाते हैं
उसके संग में शुभ भावों की धारा उत्कृष्ट बहाते हैं
उन भावों के द्वारा तीर्थंकर कर्म प्रकृति रज आते हैं
उनके पकने पर भव्य जीव वे तीर्थंकर बन जाते हैं ।१।
इस भूतल पर पंद्रह महीने धनराज रतन बरसाते हैं
सुरपति की आज्ञा से नगरी दुल्हन की तरह सजाते हैं
खुशियां छाईं हैं दश दिश में यूं लगे कहीं शहनाई बजे
हर आतम में परमातम की भक्तिके स्वर हैं आज सजे ।२।
माता ने अजब निराले अद्भुत देखे हैं सोलह सपने
यह सुना तभी रोमांच हुआ तीर्थंकर होंगे सुत अपने
अवतार हुआ तीर्थंकर का क्या मुक्ति गर्भ में आई है
क्षय होगा भ्रमण चतुर्गति का मंगल संदेशा लाई है ।३।
जब जन्म हुआ तीर्थंकर का सुरपति ऐरावत लाते हैं
दर्शन से तृप्त नहीं होते तब नेत्र हजार बनाते हैं
जा पांडुशिला क्षीरोदधि जल से बालक को नहलाते हैं
सुत माता-पिता को सांप इंद्र, तब तांडवनृत्य रचाते हैं ।४।
वैराग्य समय जब आता है प्रभु बारह भावना भाते हैं
तब ब्रह्मलोक से लौकांतिक आ धन्य धन्य यश गाते हैं
विषयों का रस फ़ीका पडता, चेतनरस में ललचाते हैं
तब भेष दिगंबर धार प्रभु संयम में चित्त लगाते हैं ।५।
नवधा भक्ति से पडगाहें, हे मुनिवर यहां पधारो तुम
हे गुरुवर अत्र अत्र तिष्ठो, निर्दोष अशन कर धारो तुम
हे मन-वच-तन आहार शुद्ध अति भाव विशुद्ध हमारे हैं
जन्मांतर का यह पुण्य फ़ला, श्री मुनिवर आज पधारे हैं ।६।
सब दोष और अंतराय रहित, गुरुवर ने जब आहार किया
देवों ने पंचाश्चर्य किये, मुनिवर का जय-जयकार किया
है धन्य धन्य शुभ घडी आज, आंगन में सुरतरु आया है
अब चिदानंद रसपान हेतु, मुनिवर ने चरण बढाया है ।७।
प्रभु लीन हुए शुद्धातम में निज ध्यान अग्नि प्रगटाते हैं
क्षायिक श्रेणी आरूढ हुए, तब घाति चतुष्क नशाते हैं
प्रगटाते दर्शन-ज्ञान-वीर्य, सुख लोकालोक लखाते हैं
ॐकारमयी दिव्य ध्वनि से प्रभु मुक्ति मार्ग बतलाते हैं ।८।
प्रभु तीजे शुक्लध्यान में चढ योगों पर रोक लगाते हैं
चौथे पाये में चढ प्रभुवर गुणस्थान चौदवां पाते हैं
अगले ही क्षण अशरीरी होकर सिद्धालय में फ़िर जाते हैं
थिर रहें अनंतानंत काल कृत्कृत्य दशा पा जाते हैं ।९।
है धन्य धन्य वे महान गुरु जिनवर महिमा बतलाते हैं
वे रंग राग से भिन्न चिदानंद का संगीत सुनाते हैं
हे भव्य जीव आओ सब जन, अब मोहभाव का त्याग करो
यह पंचकल्याणक उत्सव कर अब आतम का कल्याण करो