चन्द्रोज्वल अविकार स्वामी जी ,तुम गुण अपरंपार
जबै प्रभू गरभ माहिं आये, सकल सुर नर मुनि हर्षाये
रतन नगरी में बरसाये...
ओ॓.... अमित अमोघ सुथार स्वामी जी...तुम गुण अपरंपार ॥
जन्म प्रभू तुमने जब लीना, न्हवन मन्दिर पर हरि कीना
भक्ति सुर शचि सहित बीना...
ओ... बोले जयजयकार स्वामी जी...तुम गुण अपरंपार ॥
अथिर जग तुमने जब जाना, आस्तवन लोकांतिक थाना
भये प्रभू जति नगन बाना....
ओ....त्यागराज को भार स्वामी जी...तुम गुण अपरंपार ॥
घातिया प्रकृति जबह नासी, लोक तरु आलोक परकासी
करी प्रभू धर्म वृष्टि खासी...
ओ... केवल ज्ञान भंडार स्वामी जी...तुम गुण अपरंपार ॥
अघातिया प्रकृति जो विघटाई, मुक्ति कांता तब ही पाई
निराकुल आनंद सुखदाई...
ओ ...तीन लोक सिरताज स्वामी जी...तुम गुण अपरंपार ॥
चरण मुनि जब तुमरे ध्यावे, पार गणधर हूं नहिं पावै
कह लग भागचन्द गावे...
ओ...भवसागर से पार स्वामी जी...तुम गुण अपरंपार ॥