तेरी शांति छवि पे मैं
तेरी शांति छवि पे मैं बलि बलि जाऊँ
खुले नयन मारग आ दिल मैं बिठाऊँ ॥
लेखा ना देखा, धर्म पाप जोड़ा,
बना भोग लिप्सा कि चाहों में दौड़ा,
सहे दुख जो जो कहा लो सुनाऊँ ॥ तेरी शांति... ।१।
तेरा ज्ञान गौरव जो गणधर ने गाया
वही गीत पावन मुझे आज भाया
उसी के सुरों में सुनो मैं सुनाऊँ ॥ तेरी शांति छवि.. ।२।
जगी आत्म ज्योति सम्यक्त्व तत्त्व की
घटी है घटा शाम मिथ्या विकल की
निजानन्द सौभाग्य सेहरा सजाऊँ-२ ॥ तेरी शांति छवि. ।३।