तेरे पांच हुये कल्याण प्रभु इक बार मेरा कल्याण कर दे।
अंतर्यामी अंतर्ज्ञानी प्रभु दूर मेरा अज्ञान कर दे॥
गर्भ समय में रत्न जो बरसे, उनमें से एक रतन नहीं चाहूं,
जन्म समय क्षीरोदधि से इन्द्रों ने किया वो न्हवन नहीं चाहूं
मैं क्या चाहूं सुनले २
जो चित्त को निर्मल शांत करे वहीं गंधोदक मुझे दान कर दे
धार दिगम्बर वेश किया तप
तप कर विषय विकार को त्यागा
सार नहीं संसार में कोई इसीलिये संसार को त्यागा ॥
मैं क्या चाहूं सुनले २
अपने लिये बरसों ध्यान किया मेरी ओर भी थोडा ध्यान कर दे
केवलज्ञान की मिल गई ज्योति लोकालोक दिखाने वाली,
समवशरण में खिर गई वाणी सबकी समझ में आने वाली ॥
मैं क्या चाहूं सुनले २
हे वीतराग सर्वज्ञ प्रभु मेझे तेरा दर्श आसान कर दे ॥
तीर्थंकर बनकर तू प्रगटा स्वाभाविक थी मुक्ति तेरी,
मुक्ति मुझको दे तब देना भव भव की भक्ति तेरी ॥
मैं क्या चाहूं सुनले २
निशदिन तेरे गुणगान करूं बस इतना ही भगवान कर दे ॥
यहां कौन है ऐसा तेरे सिवा औरों को जो अपने समान कर दे॥