स्वामी तेरा मुखड़ा है मन
तर्ज: भैया मेरे राखी...
स्वामी तेरा मुखड़ा है मन को लुभाना
स्वामी तेरा गौरव है मन को डुलाना
देखा ना ऐसा सुहाना-२ ॥ स्वामी .. ॥
ये छवि ये तप त्याग जगत का,भाव जगाता आतम बल का
हरता है नरकों का जाना-२ ॥ स्वामी.. ।१।
जो पथ तूने है अपनाया, वो मन मेरे भी अति भाया
पाऊँ मैं तुम पद लुभाना-२ ॥ स्वामी.. ।२।
पंचम गति का मैं वर चाहूँ, जीवन का सौभाग्य दिपाऊँ
गूँजे हैं अंतर तराना-२ ॥ स्वामी.. ।३।