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श्रीजिनधर्म सदा जयवन्त


admin

श्रीजिनधर्म सदा जयवन्त ......

तीन लोक तिहुँ कालनिमाहीं,जाको नाहीं आदि न अन्त ॥श्री.॥

 

सुगुन छियालिस दोष निवारैं, तारन तरन देव अरहंत,

गुरु निरग्रंथ धरम करुनामय,उपजैं त्रेसठ पुरुष महंत ।श्री.।

 

रतनत्रय दशलच्छन सोलह-कारन साध श्रावक सन्त,

छहौं दरब नव तत्त्व सरधकै, सुरग मुकति के सुख विलसन्त

 

नरक निगोद भ्रम्यो बहु प्रानी, जान्यो नाहिं धरम-विरतंत,

’द्यानत’ भेदज्ञान सरधातैं, पायो दरव अनादि अनन्त ।श्री.।

 



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