रोम रो्म पुलकित हो जाय
रोम रो्म पुलकित हो जाय, जब जिनवर के दर्शन पाय
ज्ञानानन्द कलियाँ खिल जायँ,जब जिनवर के दर्शन पाय ॥
जिन-मन्दिर में श्री जिनराज, तन-मन्दिर में चेतनराज
तन-चेतन को भिन्न पिछान, जीवन सफल हुआ है आज ॥
वीतराग सर्वज्ञ-देव प्रभु, आये हम तेरे दरबार
तेरे दर्शन से निज दर्शन, पाकर होवें भव से पार
मोह-महातम तुरत विलाय, जब जिनवर के दर्शन पाय ।१।
दर्शन-ज्ञान अनन्त प्रभु का, बल अनन्त आनन्द अपार
गुण अनन्त से शोभित हैं प्रभु,महिमा जग में अपरम्पार ॥
शुद्धातम की महिमा आय, जब जिनवर के दर्शन पाय ।२।
लोकालोक झलकते जिसमें, ऐसा प्रभु का केवलज्ञान
लीन रहें निज शुद्धातम में, प्रतिक्षण हो आनन्द महान ॥
ज्ञायक पर दृष्टि जम जाय, जब जिनवर के दर्शन पाय ।३।
प्रभु की अन्तर्मुख-मुद्रा लखि, परिणति में प्रकटे समभाव
क्षण-भर में हों प्राप्त विलय को,पर-आश्रित सम्पूर्ण विभाव॥
रत्नत्रय-निधियाँ प्रकटाय, जब जिनवर के दर्शन पाय ।४।