रोम रोम में नेमि कुंवर के
रोम रोम में नेमि कुंवर के, उपशम रस की धारा
उपशम रस की धारा ।
राग द्वेष के बंधन तोडे, भेष दिगम्बर धार॥
ब्याह करन को आये, संग बराती लाये ।
पशुओं को बंधन में देखा, दया सिन्धु लहराये ॥
धिक धिक जग की स्वार्थ वृत्ति, रहे न सुख की धारा ॥रोम..
राजुल अति अकुलाये, नो भव की याद दिलाये।
नेमि कहें जग में न किसी का, कोई कभी हो पाय ॥
राग रूप अंगारों द्वारा, चलता है जग सारा ।२। रोम रोम..
नो भव का सुमिरण करने में, आतम तत्व विचारें।
शाश्वत ध्रुव चैतन्य राज की, महिमा चित में धारें।
लहराता वैराग्य सिंधु अब, भायें भावना बारा ।३। रोम रोम..
राजुल के प्रति राग तजा है, मुक्ति वधू को ब्याहें ।
धन्य दिगम्बर दीक्षा धरकर, आतम ध्यान लगावें ॥
भव बंधन का नाश करेंगे, पावें सुख अपारा ।४। रोम रोम..