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रोम रोम में नेमिकुंवर के, उपशम रस की धारा


admin

रोम रोम में नेमिकुंवर केउपशम रस की धारा,

राग द्वेष के बंधन तोडेवेष दिगम्बर धारा ॥

 

ब्याह करन को आयेसंग बराती लाये,

पशुओं को बंधन में देखादया सिंधु लहराये,

धिक धिक जग की स्वारथ वृत्तिकहीं न सुक्ख लघारा ॥

 

राजुल अति अकुलायेनौ भव की याद दिलाये,

नेमि कहे जग में न किसी काकोई कभी हो पाये।

रागरूप अंगारों द्वाराजलता है जग सारा ॥

 

नौ भव का सुमिरण कर नेमिआतम तत्व विचारे,

शाश्वत ध्रुव चैतन्य राज कीमहिमा चित में धारे,

लहराता वैराग्य सिंधु अबभायें भावना बारा ॥

 

राजुल के प्रति राग तजा हैमुक्ति वधू को ब्याहें,

नग्न दिगम्बर दीक्षा धर करआतम ध्यान लगायें,

भव बंधन का नाश करेंगेपावें सुख अपारा ॥

 



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