नित उठ ध्याऊँ, गुण गाऊँ, परम दिगम्बर साधु
महाव्रतधारी धारी...धारी महाव्रत धारी ॥टेक॥
राग-द्वेष नहिं लेश जिन्हों के मन में है..तन में है
कनक-कामिनी मोह-काम नहिं तन में है...मन में है
परिग्रह रहित निरारम्भी, ज्ञानी वा ध्यानी तपसी
नमो हितकारी...कारी, नमो हितकारी ।१।
शीतकाल सरिता के तट पर, जो रहते..जो रहते
ग्रीष्म ऋतु गिरिराज शिखर चढ़, अघ दहते..अघ दहते
तरु-तल रहकर वर्षा में, विचलित न होते लख भय
वन अँधियारी...भारी, वन अँधियारी ।२।
कंचन-काँच मसान-महल-सम, जिनके हैं...जिनके हैं
अरि अपमान मान मित्र-सम, जिनके हैं..जिनके हैं
समदर्शी समता धारी, नग्न दिगम्बर मुनिवर
भव जल तारी...तारी, भव जल तारी ।३।
ऐसे परम तपोनिधि जहाँ-जहाँ, जाते हैं...जाते हैं
परम शांति सुख लाभ जीव सब, पाते हैं...पाते हैं
भव-भव में सौभाग्य मिले, गुरुपद पूजूँ ध्याऊँ
वरूँ शिवनारी... नारी, वरूँ शिवनारी ।४।