नाथ तुम्हारी पूजा में सब
तर्ज: फ़ूल तुम्हें भेजा है...
नाथ तुम्हारी पूजा में सब, स्वाहा करने आया
तुम जैसा बनने के कारण, शरण तुम्हारी आया ॥
पंचेन्द्रिय का लक्ष्य करूँ मैं, इस अग्नि में स्वाहा
इन्द्र-नरेन्द्रों के वैभव की, चाह करूँ मैं स्वाहा
तेरी साक्षी से अनुपम मैं यज्ञ रचाने आया ।१।
जग की मान प्रतिष्ठा को भी, करना मुझको स्वाहा
नहीं मूल्य इस मन्द भाव का, व्रत-तप आदि स्वाहा
वीतराग के पथ पर चलने का प्रण लेकर आया ।२।
अरे जगत के अपशब्दों को, करना मुझको स्वाहा
पर लक्ष्यी सब ही वृत्ती को, करना मुझको स्वाहा
अक्षय निरंकुश पद पाने और पुण्य लुटाने आया ।३।
तुमहो पूज्य पुजारी मैं, यह भेद करूँगा स्वाहा
बस अभेद में तन्मय होना, और सभी कुछ स्वाहा
अब पामर भगवान बने, यह सीख सीखने आया ।४।