शुद्धातम तत्व विलासी रे, मुनि मगन नगन वनवासी रे,
क्षण क्षण में अंतर्मुख होते,नित सहज प्रत्याशी रे, मुनि...॥
शांत दिगम्बर मुद्रा जिनकी, मंदर अचल प्रवासी रे, मुनि...॥
ज्यों निःसंग वायु सम निर्मल, त्यों निर्लेप अकासी रे, मुनि.॥
विनय शुभोपयोग की परिणति, दत्ता सहज विनाशी रे, मुनि.॥