माता तू दया करके, कर्मों से छुडा देना,
इतनी सी विनय तुमसे, चरणों में जगह देना ॥
माता मैं भटका हूं, माया के अंधेरे में
कोई नहीं मेरा है, इस कर्मों के रेले में
कोई नहीं मेरा है तुम धीर बंधा देना ॥ माता...॥
जीवन के चौराहे पर मैं सोच रहा कब से
जाऊं तो किधर जाऊं, यह पूछ रहा मन से
पथ भूल गया हूं मैं, तुम राह दिखा देना ॥ माता...॥
लाखों को उबारा है, मुझको भी उबारो तुम
मंझधार में नैया है, उसको भी तिरा दो तुम
मंझधार में अटका हूं, उस पार लगा देना ॥ माता...॥