मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूं, मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूं ॥
मैं हूं अपने में स्वयं पूर्ण, पर की मुझमें कुछ गंध नहीं
मैं अरस, अरूपी, अस्पर्शी, पर से कुछ भी सम्बन्ध नहीं ॥
मैं रंग राग से भिन्न भेद से, भी मैं भिन्न निराला हूं
मैं हूं अखंड चैतन्य पिण्ड, निज रस में रमने वाला हूं ॥
मैं ही मेरा कर्ता धर्ता, मुझमें पर का कुछ का काम नहीं
मैं मुझमें रमने वाला हूं, पर में मेरा विश्राम नहीं ॥
मैं शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध एक, पर परिणति से अप्रभावी हूं
आत्मानुभूति से प्राप्त तत्व, मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूं ॥
- 1