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जो जो देखी वीतराग ने


admin

जो जो देखी वीतराग ने, सो सो होसी वीरा रे

अनहोनी होसी नहि क्यों जग में, काहे होत अधीरा रे ॥

 

समय एक बढै नहिं घटसी, जो सुख दुख की पीरा रे

तू क्यों सोच करै मन मूरख, होय वज्र ज्यों हीरा रे ॥

 

लगै न तीर कमान बान कहूं, मार सकै नहिं मीरा रे

तू सम्हारि पौरुष बल अपनो, सुख अनंत तो तीरा रे ॥

 

निश्‍चय ध्यान धरहु वा प्रभु को, जो टारे भव भीरा रे

’भैया’ चेत धरम निज अपनो, जो तारैं भव नीरा रे ॥

 



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