जिनवाणी के सुनै सो मिथ्यात मिटै
मिथ्यात मिटै, समकित प्रगटै
जैसे प्रात होत रवि ऊगत, रैन तिमिर सब तुरत फ़टै॥
अनादिकाल की भूल मिटावै, अपनी निधि घट घट मैं उघटै
त्याग विभाव सुभाव सुधारै, अनुभव करतां करम कटै॥
और काम तजि सेवो वाकौं, या बिन नाहिं अज्ञान घटै
बुधजन या भव परभव मांहि, बाकी हुंडी तुरत पटैं॥