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जरा चेत ओ मानव करनी से


admin

काहे पाप करे काहे छल, जरा चेत ओ मानव करनी से....

तेरी आयु घटे पल पल ॥टेक॥

 

तेरा तुझको न बोध विचार है, मानमाया का छाया अपार है,

कैसे भोंदू बना है संभल, जरा चेत ओ... ॥

 

तेरा ज्ञाता व दृष्टा स्वभाव है, काहे जड़ से यूं इतना लगाव है,

दुनियां ठगनी पे अब ना मचल, जरा चेत ओ... ॥

 

शुद्ध चिद्रूप चेतन स्वरूप तू,मोक्षलक्ष्मी का `सौभाग्य' भूप तूं,

बन सकता है यह बल प्रबल, जरा चेत ओ... ॥

 



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