जप जप रे नवकार मंत्र तू , इस भव पर भव सुख पासी,
इस भव पर भव सुख पासी ॥
अरिहंत सिद्ध आचार्य सुमरले, उपाध्याय साधु चित धर ले,
जन्म मरण थारो मिट जासी,
जन्म मरण थारो मिट जासी ॥ जप जप रे...॥
सीता सती ने इसको ध्याया, अग्नि का था नीर बनाया ,
धन्य धन्य कहे जगवासी ,
धन्य धन्य कहे जगवासी ॥ जप जप रे...॥
सेठ पुत्र का जहर हटा था, श्रीपाल का कुष्ठ मिटा था ,
टली सुदर्शन की फ़ांसी ,
टली सुदर्शन की फ़ांसी॥ जप जप रे...॥
महिमा इसकी कही ना जाय, पंकज जो नर इसको ध्याये ,
वो भवसागर तिर जासी ,
वो भवसागर तिर जासी ॥ जप जप रे...॥