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जग में न कोई सहायी


admin

जब चले आत्माराम, छोड धन-धाम, जगत से भाई।

जग में न कोई सहायी॥

 

तू क्यों करता तेरा मेरा, नहीं दुनिया में कोई तेरा।

जब काल आयतब सबसे होय जुदाई,जगमें न कोई सहायी॥

 

तू मोहजाल में फ़ंसा हुआ, पापों के रंग में रंगा हुआ।

जिन्दगानी तूने वृथा यों जी गवाई,जग में न कोई सहायी॥

 

सम्यक्त्व सुधा का पान करो, निज आतम ही का ज्ञान करो।

यूं टले जीव से लगी कर्म की काई,जग में न कोई सहायी ॥

 

चेतो चेतो अब बढे चलो, सतपथ सुमार्ग पर बढे चलो

यूं बाज रही यमराजा की शहनाई, जग में न कोई सहायी ॥

 



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