हम तो कबहुँ न निजगुन भाये
तन निज मान जान तनदुखसुख में बिलखे हरखाये ॥
तनको गरन मरन लखि तनको, धरन मान हम जाये
या भ्रम भौंर परे भवजल चिर, चहुँगति विपत लहाये ।१।
दरशबोधव्रतसुधा न चाख्यौ, विविध विषय-विष खाये
सुगुरु दयाल सीख दइ पुनिपुनि,सुनि,सुनि उर नहि लाये।२।
बहिरातमता तजी न अन्तर-दृष्टि न ह्वै निज ध्याये
धाम-काम-धन-रामाकी नित, आश-हुताश जलाये ।३।
अचल अनूप शुद्ध चिद्रूपी, सब सुखमय मुनि गाये
दौल चिदानंद स्वगुन मगन जे, ते जिय सुखिया थाये ।४।