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हम सादर शीश झुकाते हैं


admin

जो मंगल चार जगत में हैं, हम गीत उन्हीं के गाते हैं,

मंगलमय श्री जिन चरणों में, हम सादर शीश झुकाते हैं ॥

 

जहां राग द्वेष की गंध नहीं, बस अपने से ही नाता है,

जहां दर्शन ज्ञान अनंतवीर्य-सुख का सागर लहराता है,

जो दोष अठारह रहित हुऐ, हम मस्तक उन्हें नवाते हैं,

मंगलमय श्री जिन चरणों में, हम सादर शीश झुकाते हैं ॥

 

जो द्रव्य-भाव-नोकर्म रहित, नित सिद्धालय के वासी हैं,

आतम को प्रतिबिम्बित करते,जो अजर अमर अविनाशी हैं,

जो हम सबके आदर्श सदा, हम उनको ही नित ध्याते हैं,

मंगलमय श्री जिन चरणों में, हम सादर शीश झुकाते हैं ॥

 

जो परम दिगंबर वन वासी गुरु रत्नत्रय के धारी हैं,

आरंभ परिग्रह के त्यागी, जो निज चैतन्य विहारी हैं,

चलते-फ़िरते सिद्धों से गुरु-चरणों में शीश झुकाते हैं,

मंगलमय श्री जिन चरणों में, हम सादर शीश झुकाते हैं ॥

 

प्राणों से प्यारा धर्म हमें, केवली भगवान का कहा हुआ,

चैतन्यराज की महिमामय, यह वीतराग रस भरा हुआ,

इसको धारण करने वाले भव-सागर से तिर जाते हैं,

मंगलमय श्री जिन चरणों में, हम सादर शीश झुकाते हैं ॥

 



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