हरो पीर मेरी त्रिशला के लाला
हरो पीर मेरी त्रिशला के लाला
मैं सेवक तुम्हारा बड़ा भोला भाला ॥
मुझे ठग लिया अष्ट कर्मों ने स्वामी,
भटकता फिरा मैं बना मूढगामी,
विषय भोग ने मुझपे(हो...) विषय भोग ने मुझपे,
ऐसा जादू डाला, हुआ मतवाला ।१।
मैं पर को ही अपना समझता रहा हूँ,
वृथा विकथा में उलझता रहा हूँ,
धरम क्या है मैंने कभी (हो..) धरम क्या है मैंने कभी,
देखा न भाला, यूँ ही वक्त टाला ।२।
न देखा गया तुमसे जग के दुखों को ,
तजा क्षण में अपने सारे सुखों को,
अहिंसा से मेटी तुमने (हो..) अहिंसा से मेटी तुमने,
हिंसा की ज्वाला, हुई दीपमाला ।३।
सुना है प्रभो आप सुनते हो सबकी,
आती है पंकज को वो याद तबकी,
सती चंदना का तुमने(हो..) सती चंदना का तुमने,
संकट था टाला, यह सच है दयाला ।४।