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गुरु रत्नत्रय के धारी


admin

गुरु रत्नत्रय के धारी, निज आतम में विहारी,

वे कुन्दकुन्द अविकारी, हैं निश्‍चय शिवमगचारी।

गुरुवर को हमारा वंदन है, चरणों में अर्चन है॥

 

काया की ममता को टारे, सहते परिषह भारी,

पंच महाव्रत के हों धारी, तीन रतन भंडारी।

आतम निधि अविकारी, संवर भूषण के धारी,

वे कुन्दकुन्द शिवचारी, है निर्मल सुक्खकारी ॥ गुरुवर..॥

 

तुम भेदज्ञान की ज्योति जलाकर, शुद्धातम में रमते,

क्षण क्षण में अंतर्मुख होकर, सिद्धों से बातें करते।

तेरे पावन चरणों में मस्तक झुका हम देंगें,

तेरी महिमा नित गाकर, निज की महिमा पावेंगें ॥गुरुवर

 

सम्यकदर्शन ज्ञान चरण तुम, आचारों के धारी,

मन वच तन का तज आलम्बन, निज चैतन्य विहारी।

गुरु जब हम तुझको ध्यायें, तेरी शरणा को पायें,

तेरा नाम जपेगा जोनित,मनवांछित फ़ल पाजायें ॥गुरुवर



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