जो आज दिन है वो, कल ना रहेगा, कल ना रहेगा,
घड़ी ना रहेगी ये पल ना रहेगा ।
समझ सीख गुरु की वाणी, फिरको कहेगा, फिरको कहेगा,
घड़ी ना रहेगी ये पल ना रहेगा ।।टेक।।
जग भोगों के पीछे, अनन्तों काल काल बीते हैं ।
इस आशा तृष्णा के अभी भी सपने रीते हैं ।
बना मूढ़ कबलों मन पर, चलता रहेगा-२ ।।घड़ी.. ।१।
अरे इस माटी के तन पे, वृथा अभिमान है तेरा ।
पड़ा रह जायगा वैभव, उठेगा छोड़ जब डेरा ।
नहीं साथ आया न जाते, कोई संग रहेगा-२ ।।घड़ी.. ।२।
ज्ञानदृग खोलकर चेतन, भेदविज्ञान घट भर ले ।
सहज `सौभाग्य' सुख साधन,मुक्ति रमणी सखा वर ले।
यही एक पद है प्रियवर, अमर जो रहेगा-२ ।।घड़ी.. ।३।