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धनि मुनि जिन यह, भाव पिछाना


admin

धनि मुनि जिन यह, भाव पिछाना

तनव्यय वांछित प्रापति मानी, पुण्य उदय दुख जाना ॥

 

एकविहारी सकल ईश्वरता, त्याग महोत्सव माना ।

सब सुखको परिहार सार सुख, जानि रागरुष भाना ।१।

 

चित्स्वभावको चिंत्य प्रान निज, विमल ज्ञानदृगसाना ।

`दौल' कौन सुख जान लह्यौ तिन, करो शांतिरसपाना ।२।



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