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JainSamaj.World

धन धन जैनी साधु अबाधित


admin

धन धन जैनी साधु अबाधित, तत्त्वज्ञानविलासी हो ।।टेक ।।

 

दर्शन-बोधमयी निजमूरति, जिनकों अपनी भासी हो ।

त्यागी अन्य समस्त वस्तुमें, अहंबुद्धि दुखदा-सी हो ।१।

 

जिन अशुभोपयोग की परनति, सत्तासहित विनाशी हो ।

होय कदाच शुभोपयोग तो, तहँ भी रहत उदासी हो ।२।

 

छेदत जे अनादि दुखदायक, दुविधि बंधकी फाँसी हो ।

मोह क्षोभ रहित जिन परनति, विमल मयंककला-सी हो ।३।

 

विषय-चाह-दव-दाह खुजावन, साम्य सुधारस-रासी हो ।

भागचन्द ज्ञानानंदी पद, साधत सदा हुलासी हो ।४।



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