दरबार तुम्हारा मनहर है
दरबार तुम्हारा मनहर है, प्रभु दर्शन कर हर्षाये हैं
दरबार तुम्हारे आये हैं, दरबार तुम्हारे आये हैं ।।टेक।।
भक्ति करेंगे चित से तुम्हारी, तृप्त भी होगी चाह हमारी
भाव रहें नित उत्तम ऐसे, घट के पट में लाये हैं ।१।
जिसने चिंतन किया तुम्हारा, मिला उसे संतोष सहारा
शरणे जो भी आये हैं, निजआतम को लख पाये हैं ।२।
विनय यही है प्रभू हमारी, आतम की महके फुलवारी
अनुगामी हो तुमपद पावन,`वृद्धि' चरण सिर नाये हैं ।३।