चरणों में आया हूं, उद्धार
तर्ज: होठों से छू लो...
चरणों में आया हूं, उद्धार जिनंद कर दो।
निज रीति निभाकर के, उपकार जिनंद कर दो॥
संसार की नश्वरता, मैंने अब जानी है,
मंगलकारी जब ही, सुनी जिनवर वाणी है।
चारित्र की नाव चढा, भवपार जिनंद कर दो॥ निज...॥
ना चाहत भोगों की, ना जग का कोई बंधन,
गर ध्यान करूं कोई, तो देखूं केवल जिन।
तम दूर हटा मन का, उजियार जिनंद कर दो॥ निज...॥
कर्मों ने जनम जनम, मेरा पीछा नहीं छोडा,
भरमाया यूंही प्रभू से, नाता ना कभी जोडा।
करुणा कर अब इनसे, निस्तार जिनंद कर दो॥ निज...॥