संसार महा अघसागर में, वह मूढ़ महा दु:ख भरता है ।
जड़ नश्वर भोग समझ अपने, जो पर में ममता करता है।
बिन ज्ञान जिया तो जीना क्या - २
पुण्य उदय नर जन्म मिला शुभ,
व्यर्थ गमों फल लीना क्या ॥
कष्ट पड़ा है जो जो उठाना, लाख चौरासी में गोते खाना
भूल गया तूं किस मस्ती में उसदिन था प्रण कीना क्या ॥
बचपन बीता बीती जवानी, सर पर छाई मौत डरानी
ये कंचन सी काया खोकर, बांधा है गाँठ नगीना क्या ॥
दिखते जो जग भोग रंगीले, ऊपर मीठे हैं जहरीले
भव भय कारण नर्क निशानी, है तूने चित दीना क्या ॥
अंतर आतम अनुभव करले, भेद विज्ञान सुधा घट भरले
अक्षय पद `सौभाग्य' मिलेगा,पुनिपुनि मरना जीना क्या ॥