भेष दिगम्बर धार चले हैं मुनि दूल्हा बनके
मुक्तिपुरी के द्वार चले हैं मुनि दूल्हा बनके ॥
पंच महाव्रत जामा सजाया, दशलक्षण का सेहरा बंधाया,
चारित्र रथ हो सवार...चले हैं मुनि दूल्हा बनके ॥
बारह भावना संग बाराती, समिति गुप्ति सब हिल मिल गाती,
हर्ष से मंगलाचार...चले हैं मुनि दूल्हा बनके ॥
राग द्वेष आतिशबाजी छूटी, क्रोध कषाय की लडियां टूटी,
समता पायल झनकार...चले हैं मुनि दूल्हा बनके ॥
शुक्लध्यान की अग्नि जलाकर,होम किया निजकर्म खिपाकर,
तप तेरा यशगान...चले हैं मुनि दूल्हा बनके ॥
शुभ बेल शिवरमणी वरेंगे, मुक्ति महल में प्रवेश करेंगे,
गूंजेगी ध्वनि जयकार...चले हैं मुनि दूल्हा बनके ॥