और अबै न कुदेव सुहावै, जिन थाके चरनन रति जोरी ॥
कामकोहवश गहैं अशन असि, अंक निशंक धरै तिय गोरी
औरनके किम भाव सुधारैं, आप कुभाव-भारधर-धोरी ॥
तुम विनमोह अकोहछोहविन, छके शांत रस पीय कटोरी
तुम तज सेय अमेय भरी जो, जानत हो विपदा सब मोरी ॥
तुम तज तिनै भजै शठ जो सो दाख न चाखत खात निमोरी
हे जगतार उधार दौलको, निकट विकट भवजलधि हिलोरी ॥