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गुरु भक्ति


admin

गुरु स्तुति (ते गुरु मेरे उर बसो)

पं. भूधरदास कृत

ते गुरु मेरे उर बसो, जे भव जलधि जहाज।

आप तिरैं पर तारहीं, ऐसे श्री ऋषिराज॥ १॥ ते

 

मोह महारिपु जानिकै, छांड्यो सब घर बार।

होय दिगम्बर वन बसे, आतम शुद्ध विचार॥ २॥ ते

 

रोग उरग बिल वपु गिण्यो, भोग भुजङ्ग समान।

कदली तरु संसार है, त्यागो सब यह जान ॥ ३॥ ते

 

रतनत्रय निधि उर धरै, अरु निग्र्रन्थ त्रिकाल।

मार्यो काम खबीस को, स्वामी परम दयाल॥ ४॥ ते

 

पंच महाव्रत आचरै, पाँचों समिति समेत।

तीन गुप्ति पालै सदा, अजर अमर पद हेत॥ ५॥ ते

 

धर्म धरै दशलक्षणी, भावै भावना सार।

सहैं परीषह बीस द्वै, चारित रतन भण्डार॥ ६॥ ते

 

जेठ तपै रवि आकरो, सूखे सरवर नीर।

शैल शिखर मुनि तप तपै, दाझै नगन शरीर॥ ७॥ ते

 

पावस रैन डरावनी, बरसै जलधर धार।

तरुतल निवसै साहसी, चालै झंझा बयार॥ ८॥ ते

 

शीत पड़े कपि मद गले, दाहै सब वनराय।

ताल तरंगनि के तटै, ठाड़े ध्यान लगाय॥ ९॥ ते

 

इह विधि दुद्धर तप तपैं, तीनों काल मंझार।

लागे सहज सरुप में, तन सो ममत निवार॥ १०॥ ते

 

पूरव भोग न चिन्तवें, आगम वांछा नाहिं।

चहुँगति के दुख से डरैं, सुरति लगी शिवमाहिं॥ ११॥ ते

 

रंग महल में पोढ़ते, कोमल सेज बिछाय।

ते पश्चिम निशि भूमि में, सोवैं संवरि काय॥ १२॥ ते

 

गज चढि़ चलते गरब सो, सेना सजि चतुरङ्ग।

निरखि निरखि पग ते धरैं, पालैं करुणा अंग॥ १३॥ ते

 

वे गुरु चरण जहाँ धरैं, जग में तीरथ जेह।

सो रज मम मस्तक चढ़े, भूधर माँगै एह॥ १४॥ ते



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