आत्मा के लक्षण
आचार्य योगिन्दु भट्टप्रभाकर की आत्म विषयक शंका का समाधान करने के बाद आत्मा के विषय में और स्पष्ट करते हुए कहते है कि आत्मा अनादि और अनित्य है। द्रव्य स्वभाव से यह नित्य है तथा पर्याय स्वभाव से यह नाशवान है। देखिये परमात्मप्रकाश के आगे का दोहा क्रमशः -
56. अप्पा जणियउ केण ण वि अप्पे ँ जणिउ ण कोइ।
दव्व-सहावे ँ णिच्चु मुणि पज्जउ विणसइ होइ।। 56।।
अर्थ - आत्मा किसी के द्वारा उत्पन्न नहीं की गई, आत्मा के द्वारा कोई उत्पन्न नहीं किया गया, द्रव्य के स्वभाव से (आत्मा ) नित्य है, किन्तु इसकी पर्याय नष्ट होती है।
शब्दार्थ - अप्पा - आत्मा, जणियउ - उत्पन्न की गयी, केण - किसी के द्वारा, ण वि - नहीं, अप्पे ँ - आत्मा के द्वारा, जणिउ - उत्पन्न किया गया, ण - नहीं, कोइ-कोई, दव्व-सहावे ँ- द्रव्य के स्वभाव से, णिच्चु - शाश्वत, मुणि - जानो, पज्जउ-पर्याय, विणसइ-नष्ट होती है, होइ-है।
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