आत्मा के लक्षण का स्पष्टीकरण
आगे के दो दोहे में आचार्य आत्मा के लक्षण को स्पष्ट करते हैं कि आत्मा द्रव्य है जो गुण और पर्याय से युक्त है। दर्शन और ज्ञान उसके गुण हैं तथा भाव व शरीर सहित चारों गति में जन्म लेना उसकी पर्याय है जो अनुक्रम से विद्यमान है। गुण सदैव आत्मा के साथ रहते हैं जबकि पर्याय परिवर्तनशील है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे के दो दोहे -
57. तं परियाणहि दव्वु तुहुँ जं गुण-पज्जय-जुत्तु।
सह-भुव जाणहि ताहँ गुण कम-भुव पज्जउ वुत्तु।। 57।।
अर्थ - जो कोई गुण और पर्याय सहित है उसको द्रव्य जान, (आत्मा के) (सदा) एक साथ विद्यमान को उन (द्रव्य) का गुण जान (तथा) अनुक्रम से विद्यमान (द्रव्य की ) पर्याय कही गयी है।
शब्दार्थ - तं - उसको, परियाणहि-जान, दव्वु- द्रव्य, तुहुँ -तू, जं - जो कोई, गुण-पज्जय-जुत्तु- गुण, पर्याय सहित, सह-भुव - एक साथ विद्यमान को, जाणहि - जान, ताहँ- उनका, गुण-गुण, कम-भुव - अनुक्रम से विद्यमान, पज्जउ-पर्याय, वुत्तु- कही गयी है।
58. अप्पा बुज्झहि दव्वु तुहुँ गुण पुणु दंसणु णाणु ।
पज्जय चउ-गइ-भाव तणु कम्म-विणिम्मिय जाणु।। 58।।
अर्थ - तू आत्मा को द्रव्य तथा दर्शन और ज्ञान को गुण जान, चारों गति, भाव (तथा) शरीर को कर्म से रचित पर्याय जान।
शब्दार्थ - अप्पा - आत्मा को, बुज्झहि-जान, दव्वु -द्रव्य, तुहुँ -तू, गुण-गुण, पुणु - और, दंसणु - दर्शन, णाणु -ज्ञान, पज्जय-पर्याय, चउ-गइ-भाव चारों गति के भाव, तणु -शरीर, कम्म-विणिम्मिय - कर्म से रचित, जाणु - जान।
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