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आत्मा के शून्य स्वरूप का कथन


Sneh Jain

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आचार्य योगिन्दु भट्टप्रभाकर की शंका का समाधान करते हुए कहते हैं कि आत्मा अनेकान्त दृष्टि से तुम्हारे अनुसार बताये गये स्वरूपों में से सभी स्वरूपों से युक्त है। तीन स्वरूपों को बता चुकने के बाद आचार्य कहते हैं कि आत्मा सभी प्रकार के कर्मों एवं सभी प्रकार के दोषों से रहित होने के कारण शून्य है, इसी कारण पूर्णरूप से शुद्ध भी है।  देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -

 

55   अट्ठ वि कम्मइँ बहुविहइँ णवणव दोस वि जेण

     सुद्धहँ एक्कुवि अत्थि णवि सुण्णु वि वुच्चइ तेण।। 55।।

 

अर्थ - जिस कारण से (आत्मा के) आठ ही कर्म (तथा) और भी बहुत प्रकार के नौ-नौ (अठारह) दोष होते हैं, शुद्ध आत्माओं के (उन दोषों में से) एक भी (दोष ) नहीं है, उस कारण से (आत्मा) शून्य भी कही जाती है।

शब्दार्थ - अट्ठ-आठ, वि -ही, कम्मइँ-कर्म, बहुविहइँ-बहुत प्रकार के, णवणव-नौ-नौ, दोस-दोष, वि-और भी, जेण-जिस कारण से, सुद्धहँ -शुद्धों के, एक्कु -एक, वि-भी, अत्थि - है, णवि -नहीं, सुण्णु-शून्य, वि-भी, वुच्चइ-कही जाती है, तेण-उस कारण से।

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