आत्मा को जानने का साधन ज्ञान ही है
आचार्य योगीन्दु कहते है कि आत्मा को ज्ञान से ही जाना जा सकता है इन्द्रियों आदि से नहीं। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
107. अप्पा णाणहँ गम्मु पर णाणु वियाणइ जेण।
तिण्णि वि मिल्लिवि जाणि तुहुँ अप्पा णाणे तेण।।
अर्थ - आत्मा ज्ञान के ही जानने योग्य है, क्योंकि मात्र ज्ञान (ही) (आत्मा को) जानता है, (इसलिए) उन सबको ही छोड़कर तू उस ज्ञान से आत्मा को जान।
शब्दार्थ - अप्पा-आत्मा, णाणहँ-ज्ञान के, गम्मु-जानने योग्य, पर-मात्र, णाणु-ज्ञान, वियाणइ-जानता है, जेण-क्योंकि, तिण्णि-उन सबको, वि-ही, मिल्लिवि-छोडकर, जाणि-जान, तुहुँ -तू ,अप्पा - आत्मा को, णाणे -ज्ञान से, तेण-उस
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