Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World
  • entries
    284
  • comments
    3
  • views
    14,319

लवण व अंकुश - इनके माध्यम से देखते हैं पुरुष प्रधान समाज की जीती जागती तस्वीर


Sneh Jain

677 views

राम-सीता के पुत्र लवण अंकुश के चरित्र के माध्यम से हम यहाँ मात्र यही देखेंगे कि भारतीय संस्कृति में पुत्रों की माँ और पिता के जीवन में क्या भूमिका होती है ? और माँ के दुःखों का कारण क्या है ? इसको पढने के बाद शायद सभी इस पर गंभीरता से विचार करेंगे।

राम के द्वारा गर्भवती सीता को निर्वासन दिया जाने के कारण लवण अंकुश का जन्म तथा लालन-पालन वज्रजंघ राजा के पुण्डरीक नगर में हुआ। सभी कलाओं में निष्णता प्राप्त करने के बाद युवावस्था प्राप्त होने पर पराक्रमी लवण अंकुश ने खस, सव्वर, बव्वर, टक्क, कीर, काबेर, कुरव, सौबीर, तुंग, अंग, बंग, कंबोज, भोट, जालंधर, यवन, यान, जाट, कुम्भीर आदि भूखण्डों को जिन्हें प्रबल राजा राम लक्ष्मण भी नहीं जीत सके थे उनको अपने वश में कर लिया।

एक दिन राजा वज्रजंघ ने लवण अंकुश की विवाह योग्य अवस्था होना जानकर राजा पृथु के पास लवण अंकुश के लिए उसकी कन्याओं को देने हेतु प्रस्ताव भेजा। प्रत्युत्तर में पृथु राजा ने यह कहलवाया किजिनके वंश का पता नहीं, जिनकी कीर्ति है और शील, ऐसे निर्लज्जों को अपनी लड़की कौन देगा।यह सुनकर वज्रजंघ के साथ लवण अंकुश ने पृथु राजा पर आक्रमण कर दिया। युद्ध क्षेत्र में लव कुश ने पृथुराज को ललकारते हुए कहा- अरे, कुल-शील विहीनों से क्यों पराजित होते हो और पृथुराज को युद्ध में पराजित कर दिया। पृथुराज ने लवण के लिए कनकमाला और अंकुश के लिए तरंगमाला प्रदान कर दोनों का विवाह करवा दिया।

एक दिन नारद के मुख से राम द्वारा अपनी माँ सीता पर कलंक लगाकर अकारण वन में निर्वासन देने की समस्त वार्ता सुनकर लवण अंकुश भड़क उठे। उन्होंने कहा- जिसने मेरी माँ पर कलंक लगाया है मैं उसके लिए दावानल हूँ। मैं उसे भस्म करके रहूँगा। अपने पुत्रों के साहस से भयभीत हुई माँ सीता ने राम लक्ष्मण को उनके लिए अजेय बताकर उनसे युद्ध करने से रोका। तब अपनी माँ को अत्यन्त प्यार करनेवाले पुत्रों ने कहा, ‘क्या हमारी सेना में बल नहीं है? जिसने हमारी माँ को रुलाया है हम भी उसकी माँ को रुलाकर रहेंगे और युद्ध के लिए कूच कर दिया। लवण अंकुश ने राम लक्ष्मण के साथ भी बराबर की टक्कर से युद्ध किया। लक्ष्मण द्वारा छोडा गया चक्र लवण अंकुश की तीन परिक्रमा कर वापस लौट आया। तदनन्तर नारद के मुख से लवण अंकुश को अपना ही पुत्र होना जान राम लक्ष्मण ने उन दोनों का मुख चूमकर वज्रजंघ को अपनी बाहों में भर लिया।

अपने दोनों पुत्रों से मिलने के बाद सभी लोेगों के द्वारा सीता को भी अयोध्या बुलाया जाने का आग्रह किया जाने पर राम ने सीता को लाने की स्वीकृति दी। उसके बाद राम सीता के मध्य हुई  बातचीत के पश्चात् सीता ने राम की सन्तुष्टि के लिए अपनी तरफ से गर्वपूर्वक अपने सतीत्व को सिद्ध करने हेतु अग्नि में प्रवेश करने का प्रस्ताव रखा। उस समय सीता के गर्वीले वचनों को सुनकर सभी लोगों के साथ लवण अंकुश ने भी सीता के पक्ष में रहकर उनकी बात का समर्थन किया और आग में प्रवेश करने बाद फूट-फूट कर रोये भी।

 

र्य ही नहीं अफसोस होता है, जो अपने पिता की अनुपस्थिति में माँ के साथ रहकर सम्पूर्ण कलाओं में निष्णात हुए, उसके बाद पृथुराज को, तथा (अपरिचित अवस्था में) राम लक्ष्मण को भी युद्ध में पराजित  कर दिया, वे ही लवण अंकुश अपने पिता से परिचय होने पर अपनी माँ के लिए अपने पिता से लड़ नहीं सके और चुपचाप सब देखते रहे। यही कारण है माँ के दुःखों का, माँ भी नहीं समझपाती बदलते हुए अपने पुत्रों को। गंभीरता से विचार करें।

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...