Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World
  • entries
    284
  • comments
    3
  • views
    14,314

अपराजिता : जैसी समझ - वैसा ही जीवन


Sneh Jain

639 views

अभी हमने राम कथा से सम्बन्धित इक्ष्वाकुवंश के राजा दशरथ के परिवार के प्रमुख-प्रमुख पुरुषों का जीवन देखा। उनके जीवन चरित्र के आधार पर उनके जीवन में आये सुख-दःुख के कारणों पर कुछ प्रकाश पड़ा। इनके चरित्र से तादात्म स्थापित कर यदि हम देखें तो हम पायेंगे कि हमारे सुख-दुःख के भी यही कारण हैं। अब हम आगे प्रकाश डालते हैं, इक्ष्वाकुवंश के राजा दशरथ के परिवार की प्रमुख महिलाओं के जीवन पर। सबसे पहले देखते हैं राजा दशरथ की सबसे बडी रानी कौशल्या जिनका जैन रामकथा में अपराजिता नाम मिलता है।  

अपराजिता रामकथा का एक एैसा पात्र है, जो अधिकांश भारतीय महिलाओं के स्वभाव का प्रतिनिधित्व करती हैं। उसका सारा जीवन मात्र अपने पति और पुत्र के लिए समर्पित है, उनका सुख-दुख ही उसका अपना सुख दुःख है। अपने पति की अनुचित बात का विरोध करने का भी उसमें साहस नहीं है, जो होना चाहिए। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि वह अपने अनुभवों के आधार पर पुरुषों के विरोध करने के परिणाम से परिचित हो। खैर जो भी हो उनके सहज स्वभाव के कारण उनकी जिन्दगी भी एक सामान्य ही रहती है, जिसे हम उनके जीवन चरित्र के माध्यम से देखते हैं -

वनवास अंगीकार कर राम जब अपनी माँ अपराजिता के पास रहे होते हैं तो दूर से ही उनके उद्विग्न चित्त को देखकर एक सहज माँ के रूप में अपराजिता ने कहा - तुम प्रतिदिन घोड़ांे और हाथियों पर चढ़ते थे, लोगों के द्वारा तुम्हारी स्तुति की जाती थी, दिन-रात तुम पर हजारों चमर ढोेरे जाते थे, आज तुम बिना जूतों के पैरों से चलकर कैसे रहे हो? आज तुम्हारी स्तुति भी नहीं की जा रही है। उसके बाद जैसे ही उसने राम के मुख से भरत के लिए राज्य स्वयं का वनवास अंगीकार करना सुना तो वह अपराजिता रोती हुई धरती पर मूच्र्छित होकर गिर पड़़ीं। राम के द्वारा समझाने पर कठिनाई से धर्य को प्राप्त र्हुइं। ना उसने केकैयी पर क्रोध प्रकट किया ही दशरथ पर।

राम के वनवास गमन के पश्चात् 14 वर्ष के अन्तराल में अपराजिता राम के वियोग में क्षीण हो चुकी थीं। वे रात-दिन राम के आने का रास्ता देखा करती थीं। राम के विषय में पथिकों से पूछती रहती थीं। कभी घर आंगन में कौआ काँव-काँव कर उठता तो लगता कि राम मिलने वाले हैं। लंका से लौटकर सीता सहित राम लक्ष्मण अयोध्या में प्रवेश कर माँ से मिले तब माँ ने उनको सुन्दर आशीर्वाद दिया कि जब तक महासमुद्र और पहाड़ हैं, जब तक यह धरती सचराचर जीवों को धारण करती है, जब तक सुमेरु पर्वत है जब तक आकाश में सूर्य और चन्द्रमा है, नदियां प्रवाहशील हैं तब तक हे पुत्र! तुम राज्यश्री का भोग करो और सीतादेवी को पटरानी बनाओ।

बस इतना ही है एक सामान्य महिला का जीवन। यदि अपराजिता में केकैयी एवं दशरथ की अनुचित बात का सही तरीके से विरोध करने का साहस होता तो शायद रामकथा का रूप कुछ अन्य ही होता। आगे हम प्रकाश डालेंगे  राजा दशरथ के परिवार की प्रमुख महिला केकैयी पर।

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...