Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World

९४. अर्थहीन वाक्य की कथा


admin

191 views

गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण ऐसे पाँच कल्याणों में स्वर्ग के देवों ने आकर जिनकी बड़ी भक्ति से पूजा की, उन जिन भगवान् को नमस्कार कर अर्थहीन अर्थात् उल्टा अर्थ करने के सम्बन्ध की कथा लिखी जाती है ॥१॥

वसुपाल अयोध्या के राजा थे। उनकी रानी का नाम वसुमती था । इनके वसुमित्र नाम का एक बुद्धिमान् पुत्र था । वसुपाल ने अपने पुत्र के लिखने-पढ़ने का भार एक गर्ग नाम के विद्वान् पंडित को सौंपकर उज्जैन के राजा वीरदत्त पर चढ़ाई कर दी। कारण वीरदत्त हर समय वसुपाल का मानभंग किया करता था और उनकी प्रजा को भी कष्ट दिया करता था। वसुपाल उज्जैन आकर कुछ दिनों तक शहर का घेरा डाले रहे। इस समय उन्होंने अपनी राज्य-व्यवस्था के सम्बन्ध का एक पत्र अयोध्या भेजा। उसी में अपने पुत्र के बाबत उन्होंने लिखा- ॥२-६॥

“वसुमित्र के पढ़ाने - लिखाने का प्रबन्ध अच्छा करना, कोई त्रुटि न करना और उसके पढ़ाने वाले पंडित जी को खाने-पीने की कोई तकलीफ न हो - उन्हें घी, चावल, दूध-भात वगैरह खाने को दिया करना। पत्र पहुँचा। बाँचने वाले ने उसे ऐसा ही बाँचा । पर श्लोक में 'मसस्पृिक्तं एक शब्द है। इसका अर्थ करने में वह गलती कर गया। उसने इसे 'शालिभक्तं' का विशेषण समझ यह अर्थ किया कि घी, दूध और मसि' मिले चावल पंडित जी को खाने को देना ऐसा ही हुआ।”॥७-८॥

स्याही काली होती है और कोयला भी काला, शायद इसी रंग की समानता से ग्रन्थकार ने कोयले की जगह मसि का प्रयोग कर दिया होगा? पर है आश्चर्य ! ग्रन्थकार ने इस श्लोक में मसि शब्द को अलग लिखा है, पर ऊपर के श्लोक में आए हुए 'मसिस्पृक्तं' शब्द का ऐसा जुदा अर्थ किसी तरह नहीं किया जा सकता । ग्रन्थकार की कमजोरी की हद है, जो उनकी रचना इतनी शिथिल दीख पड़ती है।

जब बेचारे पंडित जी भोजन करने को बैठते तब चावलों में घी वगैरह के साथ थोड़ा कोयला भी पीसकर मिला दिया जाया करता था । जब राजा विजय प्राप्त कर लौटे तब उन्होंने पंडित जी से कुशल समाचार उत्तर में पूछा। उत्तर में पंडित जी ने कहा- राजाधिराज, आपके पुण्य प्रसाद से मैं हूँ तो अच्छी तरह, पर खेद है कि आपके कुल परम्परा की रीति के अनुसार मुझसे मसि-कोयला नहीं खाया जा सकता। इसलिए अब क्षमा कर आज्ञा दें तो बड़ी कृपा हो । राजा को पंडित जी की बात का बड़ा अचम्भा हुआ । उनकी समझ में न आया कि बात क्या है। उन्होंने फिर उसका खुलासा पूछा। जब सब बातें उन्हें ज्ञान पड़ी तब उन्होंने रानी से पूछा- मैंने तो अपने पत्र में ऐसी कोई बात न लिखी थी, फिर पंडित जी को ऐसा खाने को दिया जाकर क्यों तंग किया जाता था? रानी ने राजा के हाथ में उनका लिखा हुआ पत्र देकर कहा- आपके बाँचने वाले ने हमें यही मतलब समझाया था। इसलिए यह समझकर, कि ऐसा करने से राजा साहब का कोई विशेष मतलब होगा मैंने ऐसी व्यवस्था की थी । सुनकर को बड़ा गुस्सा आया । उन्होंने पत्र बाँचने वाले को उसी समय देश निकाले की सजा देकर उसे अपने शहर बाहर करवा दिया । इसलिए बुद्धिमानों को उचित है कि वे लिखने- बाँचने में ऐसा प्रमाद का अर्थ कर अनर्थ न करें ॥९-१६ ॥

यह विचार कर जो पवित्र आचरण के धारी और ज्ञान जिनका धन है ऐसे सत्पुरुष भगवान् के उपदेश किए हुए, पुण्य के कारण और यश तथा आनन्द को देने वाले ज्ञान - सम्यग्ज्ञान के प्राप्त करने का भक्तिपूर्वक यत्न करेंगे वे अनन्तज्ञानरूपी लक्ष्मी का सर्वोच्च सुख लाभ करेंगे ॥१७॥

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...