६३. धर्मघोष मुनि की कथा
सत्य धर्म का उपदेश करने वाले अतएव सारे संसार के स्वामी जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार कर श्रीधर्मघोष मुनि की कथा लिखी जाती है ॥१॥
एक महीना के उपवास से धर्ममूर्ति श्रीधर्मघोष मुनि एक दिन चम्पापुरी के किसी मुहल्ले में पारणा कर तपोवन की ओर लौट रहे थे। रास्ता भूल जाने से उन्हें बड़ी दूर तक हरी-हरी घास पर चलना पड़ा। चलने में अधिक परिश्रम होने से थकावट के मारे उन्हें प्यास लग आई, वे आकर गंगा के किनारे एक छायादार वृक्ष के नीचे बैठे गए। उन्हें प्यास से कुछ व्याकुल से देखकर गंगा देवी पवित्र जल का भरा एक लोटा लेकर उनके पास आई वह उनसे बोली- योगिराज, मैं आपके लिए ठंडा पानी लाई हूँ, आप इसे पीकर प्यास शान्त कीजिए। मुनि ने कहा- देवी, तूने अपना कर्तव्य पूरा किया, यह तेरे लिए उचित ही था; पर हमारे लिए देवों द्वारा दिया गया आहार- पानी काम नहीं आता । देवी सुनकर बड़ी चकित हुई वह उसी समय इसका कारण जानने के लिए विदेह क्षेत्र में गई और वहाँ सर्वज्ञ भगवान् को नमस्कार कर उसने पूछा-भगवान्, एक प्यासे मुनि को मैं जल पिलाने गई, पर उन्होंने मेरे हाथ का पानी नहीं पिया; इसका क्या कारण है? तब भगवान् ने इसके उत्तर में कहा- देवों का दिया आहार मुनि लोग नहीं कर सकते । भगवान् का उत्तर सुन देवी निरुपाय हुई तब उसने मुनि को शान्ति प्राप्त हो, इसके लिए उनके चारों ओर सुगन्धित और ठण्डे जल की वर्षा शुरू की । उससे मुनि को शान्ति प्राप्त हुई। इसके बाद शुक्लध्यान द्वारा घातिया कर्मों का नाश कर उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया। स्वर्ग के देव उनकी पूजा करने को आए । अनेक भव्य-जनों को आत्म-हित के रास्ते पर लगा कर अन्त में उन्होंने निर्वाण लाभ किया ॥२-१२॥
वे धर्मघोष मुनिराज आपको तथा मुझे भी सुखी करें, जो पदार्थों की सूक्ष्म स्थिति देखने के लिए केवलज्ञानरूपी नेत्र के धारक हैं, भव्य जनों को हितमार्ग में लगाने वाले हैं, लोक तथा अलोक के जानने वाले हैं, देवों द्वारा पूजित हैं और भव्य - जनों के मिथ्यात्व, मोहरूपी गाढ़े अन्धकार को नाश करने के लिए सूर्य हैं ॥१३॥
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.