Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World

५५. मृगध्वज की कथा


सारे संसार द्वारा भक्ति सहित पूजा किए गए जिन भगवान् को नमस्कार कर प्राचीनाचार्यों के कहे अनुसार मृगध्वज राजकुमार की कथा लिखी जाती है ॥१॥

सीमन्धर अयोध्या के राजा थे। उनकी रानी का नाम जिनसेना था। इनके एक मृगध्वज नाम का पुत्र था। वह मांस का बड़ा लोलुपी था । उसे बिना मांस खाये एक दिन भी चैन न पड़ता था। यहाँ एक राजकीय भैंसा था । वह बुलाने से पास चला आता, लौट जाने को कहने से चला जाता और लोगों के पाँवों में लोटने लगता । एक दिन वह भैंसा एक तालाब में क्रीड़ा कर रहा था । इतने में राजकुमार मृगध्वज, मंत्री और सेठ के लड़कों को साथ लिए वहाँ आया । इस भैंसे के पाँवों को देखकर मृगध्वज के मन में न जाने क्या धुन समाई सो उसने अपने नौकर से कहा- देखो, आज इस भैंसे का पिछला पाँव काट कर इसका मांस खाने के लिए पकाना । इतना कहकर मृगध्वज चल दिया। नौकर उसके कहे अनुसार भैंसे का पाँव काट कर ले गया। उसका मांस पका। उसे खाकर राजकुमार और उसके साथी बड़े प्रसन्न हुए। इधर बेचारा भैंसा बड़े दुःख के साथ लंगड़ाता हुआ राजा के सामने जाकर गिर पड़ा। राजा ने देखा कि उसकी मौत आ गई है। इसलिए उस समय उसने विशेष पूछ-पाछ न कर, कि किसने उसकी ऐसी दशा की है, दयाबुद्धि से उसे संन्यास देकर नमस्कार मन्त्र सुनाया। सच है, संसार में बहुत से ऐसे भी गुणवान् परोपकारी हैं, जो चन्द्रमा, सूर्य, कल्पवृक्ष, पानी आदि उपकारक वस्तुओं से भी कहीं बढ़कर हैं। भैंसा मरकर नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से सौधर्म स्वर्ग में जाकर देव हुआ । सच है, जिनेन्द्र भगवान् का उपदेश किया पवित्र धर्म जीवों का वास्तव में हित करने वाला है ॥२-९॥

इसके बाद राजा ने इस बात का पता लगाया कि भैंसा की यह दशा किसने की। उन्हें जब यह नीच काम अपने और मंत्री तथा सेठ के पुत्रों का जान पड़ा तब तो उनके गुस्से का कुछ ठिकाना न रहा। उन्होंने उसी समय तीनों को मरवा डालने के लिए मंत्री को आज्ञा की । इस राजाज्ञा की खबर उन तीनों को भी लग गई तब उन्होंने झटपट मुनिदत्त मुनि के पास जाकर उनसे जिन दीक्षा ले ली। इनमें मृगध्वज महामुनि बड़े तपस्वी हुए । उन्होंने कठिन तपस्या कर ध्यानाग्नि द्वारा घातिया कर्मों का नाश किया और केवलज्ञान प्राप्त कर संसार द्वारा वे पूज्य हुए। सच है, जिनधर्म का प्रभाव ही कुछ ऐसा अचिन्त्य है जो महापापी से पापी भी उसे धारण कर त्रिलोक - पूज्य हो जाता है और ठीक भी है, धर्म से और उत्तम है ही क्या? वे मृगध्वज मुनि मुझे और आप भव्य-जनों को महा मंगलमय मोक्ष लक्ष्मी दें, जो भव्य - जनों का उद्धार करने वाले हैं, केवलज्ञानरूपी अपूर्व नेत्र के धारक हैं, देवों, विद्याधरों और बड़े-बड़े राजाओं-महाराजाओं से पूज्य हैं, संसार का हित करने वाले हैं, बड़े धीर हैं और अनेक प्रकार का उत्तम से उत्तम सुख देने वाले हैं ॥१०-१५॥

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...