Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World

mangal jain

Members
  • Posts

    12
  • Joined

  • Last visited

 Content Type 

Profiles

Forums

Events

Jinvani

Articles

दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव

शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)

Downloads

Gallery

Blogs

Musicbox

Posts posted by mangal jain

  1. महोदय आप मार्गदर्शन करें तो मैं प्राकृत सीखने का बहुत इच्छुक हूं प्राकृत  एवं जैनोलॉजी में m.a. 59% से कर रखी है पीएचडी करने का भी इच्छुक हूं ।आप मार्गदर्शन करें तो मैं आभारी रहूंगा।

    On 12/5/2019 at 1:56 PM, admin said:

    प्रो. (डॉ.) कमलचन्द सोगाणी

    यह सर्वविदित है कि प्राकृत भाषा जैनधर्म-दर्शन और आगम की मूल भाषा है। यही तो महावीर की वाणी है जो लोक भाषा प्राकृत में गुम्फित है. रचित है और प्रवाहित है। जैन तत्वज्ञान के जिज्ञासु को प्राकृत भाषा के ज्ञान के बिना आगम का प्रामाणिक ज्ञान मिलना संभव नहीं है।

    जैन विद्वानों को तो जैनधर्म-दर्शन-आगम को सम्यक रूप से हृदयंगम करने के लिए प्राकृत भाषा में पारंगत होना ही चाहिये। हर्ष का विषय है कि आज विद्यार्थी व विद्वान विभिन्न कारणों से संस्कृत व अंग्रेजी तो पढ़ ही रहे हैं, परन्तु खेद है कि उनकी प्राकृत पढ़ने में रुचि नहीं है। यह बहुत चिंताजनक स्थिति है।

    kc sogani.jpgयह कहना समीचीन है कि विद्यार्थी व विद्वान अंग्रेजी व संस्कृत में तो निष्णात बने ही किन्तु उन्हें तीर्थंकर महावीर की भाषा प्राकृत को नहीं छोड़ना चाहिये। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि जिन लोगों को अंग्रेजी व संस्कृत का ज्ञान नहीं है वे प्राकृत जैसी सरल लोक-भाषा को सफलतापूर्वक पढ़ सकते हैं। अब तो प्राकृत पढ़ाने की ऐसी पद्धति विकसित कर ली गई है जिससे कोई भी जिज्ञासु हिन्दी व अंग्रेजी के माध्यम से प्राकृत सीख सकता है। अतः उनको अवसर मिलने पर प्राकृत पढ़ना नहीं भूलना चाहिये। ऐसे अधिक से अधिक लोगों को प्राकृत पढ़नी चाहिये। अवसर को छोड़ना प्राकृत पढ़नवालों की संख्या कम करना है। इससे संस्कृति की रक्षा में अवरोध पैदा करना है।

    इस तरह संस्कृत और अंग्रेजी जाननेवाले और नहीं जाननेवाले इन दोनों प्रकार के लोगों को प्राकृत नई पद्धति से पढ़ने से ही प्राकृत का ज्ञान कम समय में हो सकता है। यदि वे प्राकृत पढ़ना छोड़ देंगे तो वह दिन दूर नहीं है कि जब हमारे समस्त मूल आगम ग्रन्थ अनुपयोगी हो जायेंगे और हम ही उनकी रक्षा करना व्यर्थ व बोझिल समझने लगेंगे, जैसे आज हमारे बच्चे पाण्डुलिपियों की रक्षा करने को व्यर्थ एवं बोझिल समझते हैं।

    आश्चर्य है कि हम कषायपाहुड तथा षट्खंडागम. आचारांग व दशवैकालिक को तो पढ़ना-समझना चाहते है, पर उनकी भाषा के प्रति उदासीन हैं। बताइये कैसे कार्य सिद्ध होगा? कैसे उन महान आचार्यों के प्रति भक्ति होगी? कैसे प्रवचन-भक्ति और श्रुत-भक्ति होगी?

    क्या यह धारणा युक्तिसंगत नहीं है कि आगम की भाषा प्राकृत को पढ़ना-पढ़ाना महावीर की भक्ति है? यदि श्रमण महावीर के अनुयायी महावीर की भाषा के महत्त्व को नहीं समझते हैं तो अनुयायी होने का क्या अर्थ है? क्या इससे श्रमण संस्कृति का आधार नहीं डगमगायेगा?

    अतः यदि हम प्राकृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन को महत्त्वपूर्ण माने तो महावीर वाणी बचेगी। जब प्राकृत भाषा अध्ययन के अभाव में लुप्त होगी तो समूची जैन संस्कृति ही लुप्त हो जोयेगी। न केवल जैन संस्कृति, समूची भारतीय संस्कृति की बड़ी हानि होगी।

    प्राकृत साहित्य बहुत विशाल है, उसका क्या होगा? प्राकृत के प्रति अनभिज्ञता से उसका साहित्य किसी म्यूजियम को ही सुशोभित करेगा किन्तु संस्कृति को नहीं। प्राकृत विज्ञ होने से ही महावीर की संस्कृति बचेगी अन्यथा नहीं। सामान्य जन के लिए प्राकृत विज्ञ ही लोकभाषा हिन्दी व अंग्रेजी अनुवाद के माध्यम से मूल तक पहुँचाने में सहायक होता है और प्राकृत पढ़ने की प्रेरणा देता है।

    ध्यान रहे प्राकृत भाषा का विस्मरण जैन संस्कृति का विस्मरण है, उसके सारगर्भित अस्तित्व का मिटना है। इतना ही नहीं प्राकृत भाषा के अभाव में जैन संस्कृति के विशिष्ट एवं विलक्षण मूल्यों से भारत ही नहीं विश्व समुदाय वंचित हो जायेगा।

    अतः समाज व राज्य प्राकृत भाषा को पढ़ने के लिये प्रोत्साहित करें। आवश्यक व्यवस्था करें। उसके बिना संस्कृति, तीर्थ, कला आदि कुछ भी सुरक्षित नहीं रह सकेगा। प्राकृत भाषा के संवर्धन से यह सब सहज ही प्राप्त हो जायेगा। इस पर गम्भीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। (डॉ. वीरसागर जैन, दिल्ली ने मुझे इस विषय पर लिखने को प्रेरित किया इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ)।

    पूर्व प्रोफेसर दर्शन शास्त्र, दर्शन शास्त्र विभाग सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर

    एवं निदेशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी एवं पुस्तकालय 5-6, संस्थानिक क्षेत्र (इन्स्टीट्यूशनल एरिया)

    गुरुनानक पथ, हरिमार्ग

    मालवीय नगर, जयपुर - 302017

    मोबाइल नं. 9413417690

     

     कृपया मार्गदर्शन कर आशीर्वाद प्रदान करें

  2. 10 hours ago, admin said:

    अर्हत् सिद्धाचार्य उपाध्याय, साधु जी को हम नित ध्याय ।

    हमें मूलगुण सबके बोलो, कर्म काट मुक्ती पट खोलो ॥

     

    णमोकार मंत्र

     

    10 hours ago, admin said:

    अर्हत् सिद्धाचार्य उपाध्याय, साधु जी को हम नित ध्याय ।

    हमें मूलगुण सबके बोलो, कर्म काट मुक्ती पट खोलो ॥

     

     

  3. 10 hours ago, admin said:

    अर्हत् सिद्धाचार्य उपाध्याय, साधु जी को हम नित ध्याय ।

    हमें मूलगुण सबके बोलो, कर्म काट मुक्ती पट खोलो ॥

     

    णमोकार मंत्र

     

    10 hours ago, admin said:

    अर्हत् सिद्धाचार्य उपाध्याय, साधु जी को हम नित ध्याय ।

    हमें मूलगुण सबके बोलो, कर्म काट मुक्ती पट खोलो ॥

     

     

×
×
  • Create New...