आज भारत देश में वेस्टर्न कल्चर (vaishya sanskriti) बहुत तेजी से बढ़ रही है उसे रोकना बहुत जरूरी है नहीं तो समझ तो वैसे ही खत्म हो चुका है
सबसे पहले भाषा -हमारी मातृभाषा कुछ है राष्ट्रभाषा हिंदी है तो उसे ही आगे बढ़ाना होगा घर में मातृभाषा का उपयोग ही हो ना कि हिंदी का क्योंकि हिंदी राष्ट्रभाषा है और हमारी मातृभाषा भी है जिसे बच्चे ना तो समझते हैं न समझना चाहते हैं वह तो अंग्रेजीयत में घुल मिल चुके हैं सबसे पहले उन्हें मातृभाषा फिर राष्ट्रभाषा सिखाना जरूरी है नहीं तो हमारी मातृभाषा खत्म हो जाएगी राष्ट्रभाषा भी हो चुकी है
दूसरा भोजन- हमारे घरों में सदियों से जो भोजन चला आ रहा था वही शुरू करना होगा नहीं तो हम नष्ट हो चुके हैं ना जाने कितने पदार्थों में मांस का उपयोग हो जाता है अनजाने में E-नंबर्स के जरिए प्रिजर्वेटिव्स के जरिए अगर हमें स्वस्थ रहना है तो हमें वही करना होगा जो हमारे पूर्वजों ने किया है भोजन में हर क्षेत्र में पांच P से दूर रहे process (प्रक्रिया) preservative (खाने को खराब होने से रोकने वाले पदार्थ) packed(डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ) plastic औरr paper चींटी की दोनों बहुत जहरीले होते हैं इनके अंदर का ही तरह के हानिकारक केमिकल होते हैं
तिहरा भूशा- हमारे अंग पर अंग्रेजों के वस्त्र मुसलमानों के वस्त्र और पंजाबियों के वस्त्र दिखाई पड़ते हैं जैसे सूट जींस टीशर्ट गाउंस और भी बहुत यह सब हमारे नहीं किसी और के वस्त्र है क्योंकि हम तो बचपन से यही देखते हैं कि हमारी माई कैसे रहती थी साड़ी में नानी कैसे रहती थी साड़ी में दादी कैसे रहती थी साड़ी में हमारी शादी में कैसे रहती है साड़ी में तो वही हमारा वस्त्र है अन्य नहीं हमारा राष्ट्र वस्त्र भी साड़ी है ना कि सूट पुरुषों में भी कोट पेंट हमारा नहीं है कुर्ता पजामा हमारा है। वस्त्र सबसे ज्यादा जरूरी है इससे हमारी पहचान होती है और वह हमारा ही होना चाहिए ना किसी अन्य धर्म का यह किसी अन्य धर्म के पालक का तभी हम एक से नजर आएंगे और अपने देश के नजर आएंगे जो सबसे पहले हमारी दृष्टि में वस्त्र ही आते हैं
व्यवहार- भी हमें हमारी संस्कृति का ही अपनाना होगा संस्कार रीति रिवाज परंपरा सब हमारे होने चाहिए ना किसी अन्य धर्म के मैं किसी अन्य देश के तभी हम एक कहलाएंगे
इन बातों से हम ऊपर आ सकते हैं वरना तो कोई सवाल ही नहीं उठता कि हम कभी ऊपर आएंगे नीचे और जरूर जाएंगे आने वाले कुछ समय में
जैन समाज आत्म विश्लेषण - समृद्धि और विकास की दिशा में कैसे बढ़ेंगे कदम
In Jain Samaj : Social awareness, prosperity & progress
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आज भारत देश में वेस्टर्न कल्चर (vaishya sanskriti) बहुत तेजी से बढ़ रही है उसे रोकना बहुत जरूरी है नहीं तो समझ तो वैसे ही खत्म हो चुका है
सबसे पहले भाषा -हमारी मातृभाषा कुछ है राष्ट्रभाषा हिंदी है तो उसे ही आगे बढ़ाना होगा घर में मातृभाषा का उपयोग ही हो ना कि हिंदी का क्योंकि हिंदी राष्ट्रभाषा है और हमारी मातृभाषा भी है जिसे बच्चे ना तो समझते हैं न समझना चाहते हैं वह तो अंग्रेजीयत में घुल मिल चुके हैं सबसे पहले उन्हें मातृभाषा फिर राष्ट्रभाषा सिखाना जरूरी है नहीं तो हमारी मातृभाषा खत्म हो जाएगी राष्ट्रभाषा भी हो चुकी है
दूसरा भोजन- हमारे घरों में सदियों से जो भोजन चला आ रहा था वही शुरू करना होगा नहीं तो हम नष्ट हो चुके हैं ना जाने कितने पदार्थों में मांस का उपयोग हो जाता है अनजाने में E-नंबर्स के जरिए प्रिजर्वेटिव्स के जरिए अगर हमें स्वस्थ रहना है तो हमें वही करना होगा जो हमारे पूर्वजों ने किया है भोजन में हर क्षेत्र में पांच P से दूर रहे process (प्रक्रिया) preservative (खाने को खराब होने से रोकने वाले पदार्थ) packed(डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ) plastic औरr paper चींटी की दोनों बहुत जहरीले होते हैं इनके अंदर का ही तरह के हानिकारक केमिकल होते हैं
तिहरा भूशा- हमारे अंग पर अंग्रेजों के वस्त्र मुसलमानों के वस्त्र और पंजाबियों के वस्त्र दिखाई पड़ते हैं जैसे सूट जींस टीशर्ट गाउंस और भी बहुत यह सब हमारे नहीं किसी और के वस्त्र है क्योंकि हम तो बचपन से यही देखते हैं कि हमारी माई कैसे रहती थी साड़ी में नानी कैसे रहती थी साड़ी में दादी कैसे रहती थी साड़ी में हमारी शादी में कैसे रहती है साड़ी में तो वही हमारा वस्त्र है अन्य नहीं हमारा राष्ट्र वस्त्र भी साड़ी है ना कि सूट पुरुषों में भी कोट पेंट हमारा नहीं है कुर्ता पजामा हमारा है। वस्त्र सबसे ज्यादा जरूरी है इससे हमारी पहचान होती है और वह हमारा ही होना चाहिए ना किसी अन्य धर्म का यह किसी अन्य धर्म के पालक का तभी हम एक से नजर आएंगे और अपने देश के नजर आएंगे जो सबसे पहले हमारी दृष्टि में वस्त्र ही आते हैं
व्यवहार- भी हमें हमारी संस्कृति का ही अपनाना होगा संस्कार रीति रिवाज परंपरा सब हमारे होने चाहिए ना किसी अन्य धर्म के मैं किसी अन्य देश के तभी हम एक कहलाएंगे
इन बातों से हम ऊपर आ सकते हैं वरना तो कोई सवाल ही नहीं उठता कि हम कभी ऊपर आएंगे नीचे और जरूर जाएंगे आने वाले कुछ समय में