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Jinvani
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दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव
शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)
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Posts posted by Ratan Lal Jain
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सात सागर के पाप
रतन लाल जैन
जोधपुर (राजस्थान)
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प्राकृत भाषा, आर्या छंद, अनादि निधन (किसी ने नहीं रचा)
सुशीला गंगवाल, जोधपुर (राजस्थान)
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बहुत ही सुन्दर प्रयास, खेल ही खेल में सभी तीर्थंकर के पहचान चिन्ह भी याद हो गये।
बहुत बहुत साधुवाद
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वर्तमान में विश्व अनेक वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहा है और हम उन समस्याओं का समाधान ढूंढ रहे हैं, तो तीर्थंकर महावीर के दर्शन और शिक्षाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं । समय है समकालीन समस्याओं के समाधान खोजने का, जैन दर्शन को अपनाने का। जैन धर्म के तीन बुनियादी सिद्धांतों अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह, के माध्यम से मानव जाति की इन समस्याओं को हल संभव है। यदि इनका पालन किया जाये तो निश्चित रूप से विश्व में शांति और सद्भाव स्थापित हो सकता है।
रतन लाल जैन, जोधपुर (राजस्थान)
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इंद्रिय और मन के निमित्त से शब्द रस स्पर्श रूप और गंधादि विषयों मे अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप जो ज्ञान होता है, वह मतिज्ञान है। ( द्रव्यसंग्रह टीका/44/188/1 )
मूल रुप से मतिज्ञान के ये 4 भेद है - अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा
उपरोक्त भेदों के प्रभेद या भंग–अवग्रहादि की अपेक्षा = 4; पूर्वोक्त 4×6 इंद्रियाँ = 24; पूर्वोक्त 24+ व्यंजनावग्रह के 4 = 28; पूर्वोक्त 28+अवग्रहादि 4 = 32–में इस प्रकार 24, 28, 32 ये तीन मूल भंग हैं। इन तीनों की क्रम से बहु बहुविध आदि 6 विकल्पों से गुणा करने पर 144, 168 व 192 ये तीन भंग होते हैं। उन तीनों को ही बहु बहुविध आदि 12 विकल्पों से गुणा करने पर 288, 336 व 384 ये तीन भंग होते हैं। इस प्रकार मतिज्ञान के 4, 24, 28, 32, 144, 168, 192, 288, 336 व 384 भेद भी होते हैं। ( षटखंडागम 13/5,5/ सूत्र 22-35/216-234); ( तत्त्वार्थसूत्र/1/15-19 ); ( पंचसंग्रह / प्राकृत/1/121 ); ( धवला 1/1,1,115/ गा.182/359); ( राजवार्तिक/1/19/9/70/7 ); ( हरिवंशपुराण/10/145-150 ); ( धवला 1/1,1,2/93/3 ); ( धवला 6/1,9,1,14/16,19,21 ); ( धवला 9/4,1,45/144,149,155 ); ( धवला 13/5,5,35/239-241 ); ( कषायपाहुड़ 1/1,1/10/14/1 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/13/55-56 ); ( गोम्मटसार जीवकांड/306-314/658-672 ); ( तत्त्वसार/1/20-23 )।
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‘अवग्रहेहावायधारणा:।’ अवग्रह, ईहा, अवाय, और धारणा ये मतिज्ञान के चार भेद हैं ।
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अहिंसा का सामान्य अर्थ है 'हिंसा न करना'। इसका व्यापक अर्थ है - किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना।
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खट्टा, मीठा, कडुवा, कषायला और चरपरा।
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1452 गणधर
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निर्जरा तत्व
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आदिनाथ जी
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चन्द्रप्रभु व पुष्पदन्त भगवान
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एकत्व भावना
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श्री शुभचन्द्राचार्य
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संकल्पी, उद्योगी, आरंभी व विरोधी हिंसा
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अष्टमी व चतुर्दशी कृष्ण व शुक्ल पक्ष की
आज की पहेली (प्रश्न ) 9 अप्रैल 23
In जैन धर्म पहेली
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1985, आहार जी