३. वक्ता की प्रमाणिकता - ‘धर्म का प्रयोजन व उसकी महिमा क्या है ?’ यह समस्या है, उसको सुलझाने के पाँच कारण बतलाये गये थे कल । पहिला कारण था इस विषय को फोकट का समझना तथा उसको रूचि पूर्वक न सुनना । उसका कथन हो चुका । अब दूसरे कारण का कथन चलता है ।
दूसरा कारण है वक्ता की अपनी अप्रमाणिकता । आज तक धर्म की बात कहने वाले अनेक मिले, पर उनमें से अधिकतर वास्तव में ऐसे थे, कि जिन बेचारों को स्वयं उसके सम्बंध में कुछ खबर न थी । और यदि कुछ जानकार भी मिले, तो उनमें से अधिकतर ऐसे थे जिन्होंने शब्दों में तो यथार्थ धर्म के सम्बंध में कुछ पढ़ा था, शब्दों में कुछ जाना भी था, पर स्वयं उसका स्वाद नहीं चखा था । अव्वल तो कदापि ऐसा मिला ही नहीं, जिसने कि उसकी महिमा को जाना हो, और यदि सौभाग्यवश मिला भी तो उसकी कथन पद्धति आगम के आधार पर रही । उन शब्दों के द्वारा व्याख्यान करने लगा, जिनके रहस्यार्थ को आप जानते न थे, सुनकर समझते तो क्या समझते ?
ज्ञान की अनेक धारायें हैं । सर्व धाराओं का ज्ञान किसी एक साधारण व्यक्ति को होना असंभव है । आज लोक में कोई भी व्यक्ति अनाधिकृत विषय के सम्बंध में कुछ बताने को तैयार नहीं होता । यदि किसी सुनार से पूछें कि यह मेरी नब्ज तो देखिये, क्या रोग है और क्या औषध लूँ ? तो कहैगा कि वैद्य के पास जाइये, मैं वैद्य नहीं हूँ, इत्यादि । यदि किसी वैद्य के पास जाकर कहूँ कि देखिये तो यह जेवर खोटा है कि खरा ? खोटा है तो कितना खोटा है ? तो अवश्य ही यही कहैगा कि सुनार के पास जाओ, मैं सुनार नहीं हूँ, इत्यादि । परन्तु एक विषय इस लोक में ऐसा भी है, जो आज किसी के लिये भी अनधिकृत नहीं । सब ही मानों जानते हैं उसे । और वह है धर्म । घर में बैठा, राह चलता, मोटर में बैठा, दुकान पर काम करता, मंदिर में बैठा या चौपाल में झाडू लगाता कोई भी व्यक्त्िा आज भले कुछ और न जानता हो परन्तु धर्म के संबंध में अवश्य जानता है वह । किसी से पूछिये अथवा वैसे ही कदाचित् चर्चा चल जाये, तो कोई भी ऐसी नहीं है कि इस फोकट की वस्तु ‘धर्म’ के सम्बंध में कुछ अपनी कल्पना के आधार पर बताने का प्रयत्न न करे । भले स्वयं उसे यह भी पता न हो कि धर्म किस चिड़िया का नाम है । भले इन शब्दों से भी चिड़ हो उसे, पर आपको बताने के लिये वह कभी भी टांग अड़ाये बिना न रहेगा । स्वयं उसे अच्छा न समझता हो अथवा स्वयं उसे अपने जीवन में अपनाया न हो, पर आपको उपदेश देने से न चूकेगा कभी । सोचिये तो, कि क्या धर्म ऐसी ही फोकट की वस्तु है ? यदि ऐसा ही होता तो सबके सब धर्मी ही दिखाई देते । पाप, अत्याचार, अनर्थ आदि शब्द व्यर्थ हो जाते ।
परन्तु सौभाग्यवश ऐसा नहीं है । धर्म फोकट की वस्तु नहीं है । यह अत्यंत महिमावंत है । सब कोई इसको नहीं जानते । शास्त्रों के पाठी बड़े-बडे विद्वान भी सभी इसके रहस्य को नहीं पा सकते । कोई बिरला अनुभवी ही इसके पार को पाता है । बस वही हो सकता है प्रमाणिक वक्ता । इसके अतिरिक्त अन्य किसी के मुख से धर्म का स्वरूप सुनना ही इस प्राथमिक स्थिति में आपके लिये योग्य नहीं । क्योंकि अनेक अभिप्रायों को सुनने से, भ्रम में उलझकर झुंझलाये बिना न रह सकोगे । जितने मुख उतनी ही बातें, जितने उपदेश उतने ही आलाप, जितने व्यक्ति उतने ही अभिप्राय । सब अपने-अपने अभिप्राय का ही पोषण करते हुये वर्णन कर रहे हैं धर्म स्वरूप का । किसकी बात को सच्ची समझोगे ? क्योंकि सब बातें होंगी । एक दूसरे को झूठा ठहरातीं, परस्पर विरोधी ।
वक्ता की किञ्चित् प्रमाणिकता का निर्णय किये बिना जिस किसी से धर्म चर्चा करना या उपदेश सुनना योग्य नहीं । परन्तु इस अज्ञान दशा में वक्ता की प्रमाणिकता का निर्णय कैसे करें ? ठीक है तुम्हारा प्रश्न । है तो कुछ कठिन काम पर फिर भी संभव है । कुछ बुद्धि का प्रयोग अवश्य मांगता है और वह तुम्हारे पास है । धेले की वस्तु की परीक्षा करने के लिये तो आप में काफी चतुराई है । क्या जीवन की रक्षक अत्यंत मूल्यवान इस वस्तु की परीक्षा ना कर सकोगे ? अवश्य कर सकोगे । पहिचान भी कठिन नहीं । स्थूलत: देखने पर जिसके जीवन में उन बातों की झांकी दिखाई देती हो जो कि वह मुख से कह रहा हो, अर्थात् जिसका जीवन सरल, शांत व दयापूर्ण हो, जिसके शब्दों में माधुर्य हो, करूणा हो और सर्व सत्व का हित हो, सभ्यता हो, जिसके वचनों में पक्षपात की बू न आती हो जो हट्ठी न हो, सम्प्रदाय के आधार पर सत्यता को सिद्ध करने का प्रयत्न न करता हो । वाद-विवाद रूप चर्चा करने से डरता हो, आपके प्रश्नों को शांतिपूर्वक सुनने की जिसमें क्षमता हो तथा धैर्य से व कोमलता से उसे समझाने का प्रयत्न करता हो, आप की बात सुनकर जिसे क्षोभ न आता हो, जिसके मुख पर मुस्कान खेलती हो, विषय भोगों के प्रति जिसे अंदर से कुछ उदासी हो, प्राप्त विषयों के भोगने से भी जो घबराता हो तथा उनका त्याग करने से जिसे संतोष होता हो, अपनी प्रशंसा सुनकर कुछ प्रसन्नसा और अपनी निन्दा सुनकर कुछ रुष्टसा हुआ प्रतीत न होता हो तथा अन्य भी अनेक इसी प्रकार के चिन्ह हैं जिनके-द्वारा स्थूल-रूप से आप वक्ता की परीक्षा कर सकते हैं ।