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  • १.२.४ इच्‍छा गर्त

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    admin

    ४. इच्‍छा गर्त – शांति की पहचान भी अनुभव के आधार पर करनी है, किसी की गवाही लेकर नहीं और बड़ी सरल है वह । केवल अंतरंग के परिणामों का या अंतर्ध्वनि का विश्‍लेषण करके देखना है । असंतोष में डूबी आज की ध्‍वनि प्रतिक्षण मांग रही है, तुझसे, ‘कुछ और’ । ‘कुछ और चाहिये अभी तृप्‍त नहीं हुआ, अभी कुछ और भी चाहिये’, बराबर ऐसी ध्‍वनि सुनने में आ रही है । वास्‍तव में इस ध्‍वनि का नाम ही तो अभिलाषा, इच्‍छा या व्‍याकुलता । क्‍या कुछ संदेह है इसमें भी ? यदि है तो देख, आज तुझे इच्‍छा है अपनी युवती कन्‍या का जल्‍दी से जल्‍दी वि‍वाह करने की, पर योग्‍य वर न मिलने के कारण कर नहीं पा रहा है । तेरी इच्‍छा पूरी नहीं हो रही है । बस यही तो है तेरे अंदर की व्‍याकुलता, व्‍यग्रता, अशांति या दु:ख ।

     

          पुरूषार्थ करके अधिकाधिक कमा डाला, पर उस ध्‍वनि की और उपयोग गया तो आश्‍चर्य हुआ यह देखकर कि ज्‍यों-ज्‍यों धन बढ़ा वह ‘कुछ और’ की ध्‍वनि और भी बलवान होती गई । ज्‍यों-ज्‍यों भोग भोगे, भोगों के प्रति की अभिलाषा और अधिक बढ़ती गई । क्‍या कारण है इसका ? जितनी कुछ भी धन-राशि की प्राप्ति हुई थी,  उतना तो इसको कम होना चाहिये था या बढ़ना ?  बस सिद्धांत निकल गया कि इच्‍छाओं का स्‍वभाव ही ऐसा है कि ज्‍यों-ज्‍यों मांग पूरी करें त्‍यों -त्‍यों दबने की बजाय और अधिक बढ़े । इच्‍छा के बढ़ने में भी संभवत: हर्ज न होता, यदि यह संभव होता कि एक दिन जाकर इसका अन्‍त आ जायेगा, क्‍योंकि इच्‍छा का अन्‍त आ जाने पर भी मैं पुरूषार्थ करता रहूँगा और अधिक धम कमाने का, एक दिन इतना संचय कर लूंगा कि उसकी पूर्ति हो जाये । परन्‍तु विचारने पर यह स्पष्ट प्रतीति में आता कि इच्‍छा का कभी अन्‍त नहीं होगा । इच्‍छा असीम है और इसके सामने पड़ी हुई तीन-लोक की सम्‍पत्ति सीमित । संभवत: इतनी मात्र कि इच्‍छा के खड्डे में पड़ी हुई इतनी भी दिखाई न दे, जैसा कि कोई परमाणु । इस पर भी इसको बंटवाने वाली इतनी बड़ी जीवराशि ? क्‍योंकि सब ही को तो इच्‍छा है उसकी, तेरी भाँति । बता क्‍या संभव है ऐसी दशा में इस इच्‍छा की पूर्ति ? इसका अनन्‍तवां अंश भी तो संभवत: पूर्ण न हो सके ? फिर कैसे मिलेगी तुझे शांति, धन प्राप्ति के पुरूषार्थ से ? बस बन गया सिद्धांत ?  धन व भोगों की प्राप्ति का नाम सुख व शांति नहीं, बल्कि उनका अभाव शांति है, और इसलिये धनोपार्जन या भोगों सम्बंधी पुरूषार्थ, इस दिशा का पुरूषार्थ नहीं है ।


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